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वर्तमान समय में गोवर्धन –गिरिराज पर्वत

श्री गोवर्धन पर्वत को पृथ्वी के सर्वाधिक पवित्र स्थानो में से एक माना जाता है।

मूल रुप से गिरिराज श्रीकृष्ण के सीने अथवा हृदय से गोलोक में अवतरित हुए थे। प्रकाश के स्वरुप में दिव्य प्रेम पृथ्वी पर गिरा और वह एक विशालकाय पर्वत का आकार ग्रहण करने लगा, जिसे श्री ठाकुरजी एवं राधाजी का आशीर्वाद प्राप्त था।

(श्री गोवर्धनजी के जन्म का विस्तृत विवरण ‘जन्म अध्याय’ में पढ़ा जा सकता है)

यह श्री राधाकृष्ण की अनेक लीलाओं से जुड़ा हुआ है और आज भी व्रज क्षेत्र में आने वाले सभी लोगों के लिए इस पवित्र स्थान की परिक्रमा बहुत महत्वपूर्ण होती है।


Giriraj Govardhan splendour


गिरिराज गोवर्धन मथुरा से पश्चिम की दिशा में लगभग 14 मील की दूरी पर स्थित है। यह अन्योर गांव के पूर्व और गंथोली गांव के पश्चिम में स्थित है। इसमें तीन शिखर हैः आदि शिखर- जिस पर श्रीकृष्ण ने लीला की, देव शिखर- जिस पर श्रीनाथजी क्रीड़ा करते थे, ब्रह्म शिखर- जहां पर श्रीकृष्ण अंत में अपनी लीला करेंगे।

श्री गोवर्धन के शीर्ष पर प्राचीन श्रीनाथजी मंदिर है, जिसकी स्थापना श्री वल्लभाचार्य ने की थी। यह जतिपुरा नामक नगर में स्थित है। इस भाग को पवित्र पर्वत के मुखारविंद के नाम से जाना जाता है, जहां पर श्रीनाथजी की उपासना की जाती है। दूसरी तरफ अन्योर गांव स्थित है।


ShreeNathji mandir on Girirajji


ShreeNathji Chavi darshan in the mandir on Shri Govardhan; The original Vigrah (Murti) is at Nathdwara


Mukharvind of the sacred parvat; where ShreeNathji is worshipped



पांच हजार वर्ष पूर्व इसकी ऊंचाई तीन किलॉमेटर थी, जिसके कारण इसकी छाया मथुरा तक जाती थी जोकि १५ से २० किमी की दूरी पर स्थित है। परंतु वर्तमान समय में इसकी ऊंचाई घट कर बमुश्किल २५ मीटर रह गयी है। इसका सर्वोच्च शिखर ८० फीट पर स्थित है।

(ऐसा पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण हुआ है.. इसकी विस्तृत कहानी ‘जन्म अध्याय’ में प्रस्तुत की गयी है..)


Shri Govardhan on the Radha Kund side where it is disappearing in the earth


Girirajji is already gone deep in the patal(earth) at many places


गिरिराज जी की तीन श्रृंखलाएं हैं

आदि शिखर- राधाकुंड से दानघाटी तक

मध्य शिखर- श्री गोवर्धन से सुरभि कुंड तक

ब्रम्ह शिखर- सुरभि कुंड से अप्सरा कुंड तक


कृष्णावतार के समय श्रीकृष्ण ने आदि शिखर पर दिव्य क्रीड़ा को मूर्त किया था। आज मध्य शिखर पर दिव्य क्रीड़ा आयोजित की जाती है। इसके बाद दिव्य क्रीड़ा ब्रह्म शिखर पर आयोजित होगी।

गोवर्धन पर्वत स्वयं श्रीकृष्ण के समान माना जाता है, क्योंकि प्रसिद्ध पवित्र लीला में हम यह देखेंगे कि भगवान कृष्ण ने स्वयं ही गिरिराज गोवर्धन के स्वरुप को धारण किया है एवं वे व्रजवासियों से चढ़ावे को स्वीकार करते आ रहे हैं।

गिरिराजजी को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समान माना जाता है।

गिरिराज गोवर्धन के चार स्वरुप हैं- एक गाय, शेर, गोचारक, श्वेत सर्प।


मूल दिव्य व्रज से केवल तीन चीजें रह गयीं, जिसने अपनी मौलिक पवित्रता को बरकरार रखाः श्री यमुनाजी, गोवर्धन पर्वत एवं व्रज का रज!


Shri Yamunaji at Kesi Ghat, Vrindavan



A beautiful view of Shri Govardhan from the sthal of ShreeNathji Appearance



Few spots like this has maintained the purity of the sacred Ruj



इस पवित्र पर्वत के पत्थरों को ‘शिला’ कहा जाता है, कोई भी व्यक्ति यहां से शिला नहीं ले जाता, क्योंकि इसे एक पर्वत के रुप में बहुत पवित्र और दिव्य माना जाता है।

वास्तव में यदि आप यहां पर दर्शन के लिए चढ़ कर जाते हैं, तो आपको इसके समक्ष झुक कर क्षमा माननी चाहिए।



गिरिराजजी की परिक्रमा

श्रीकृष्ण चंदर (जैसा कि गर्ग संहिता में वर्णित है) ने भी परिक्रमा की थी।

श्री वल्लभाचार्य, श्री गोसाई जी सभी ने परिक्रमा की थी।

भक्त इस परिक्रमा को भिन्न तरीके से करते हैं, पैदल चल कर, दुग्ध कलश के साथ चल कर, नली से बेहद धीमें दुग्ध प्रवाह के साथ और दंडवत परिक्रमा, जो बहुत कठिन होती है जिसमें भक्त गण पूरी परिक्रमा के दौरान पूर्ण दंडवत हो कर चलते हैं। यह कठिन होती है और इसे पूर्ण करने के बाद लगभग १० से १५ दिन का समय लग सकता है। इससे अधिक कठिन दंडवत परिक्रमा होती है, जिसमें भक्त अगला कदम बढ़ाने के पहले एक स्थान पर १०८ बार साक्षात दंडवत करता है। इसे पूर्ण होने में काफी समय लग जाता है।

यह परिक्रमा गिरिराजजी एवं महाप्रभुजी के समक्ष दंडवत होने के बाद पूर्ण होती है। अनेक भक्त इस परिक्रमा को नंगे पांव करना पसंद करते हैं।


Parikrama by foot



Dandwati parikrama of 21 kms



Sadhu doing the 108 dandwati parikrama



A couple dandwati parikrama; dandwat done alternately by husband and wife



Daan Ghati area where bhakts do a dandwat before starting the parikrama



Parikrama with milk




परिक्रमा मार्ग को तीन भिन्न मार्गों में विभक्त किया गया है।

इसमें एक पाँच कोस (15 किमी) है, इसका मार्ग गोवर्धन गांव से अन्योर गांव तक जाता है और इस परिक्रमा में राधा कुंड नहीं जाया जाता।

सात कोस (२१ किमी) यह जैतीपुरा में मुखारविंद से प्रारंभ होकर गोवर्धन गांव-मानसी गंगा-उद्धव कुंड-राधा कुंड-अन्योर गांव-गोविंद कुंड-पुचरी गांव-सुरभि कुंड होते हुए वापस मुखारविंद पर पूर्ण होती है।

नौ कोस परिक्रमा में गोवर्धन गांव पार करने के बाद चंद्र सरोवर को सम्मिलित किया जाता है। यह परिक्रमा मानसी गंगा के निकट से प्रारंभ होती है, जो श्री गोवर्धन की कमर पर स्थिति है।

शास्त्र नियमों के अनुसार परिक्रमा को नंगे पांव किया जाना चाहिए और इसे वाहन पर सवार हो कर नहीं करना चाहिए, जैसा कि लोग आजकल करते हैं।

परिक्रमा के प्रारंभ और अंत का स्थान एक होना चाहिए एवं २२किमी लंबी परिक्रमा प्रारंभ एवं समापन के दौरान समुचित रुप से उपासना की जानी चाहिए। मानसी गंगा, राधा कुंड एवं श्याम कुंड गोवर्धन के परिक्रमा मार्ग पर स्थित है। भक्तों के लिए इसके घेरे में होना आवश्यक है, क्योंकि वे इस पवित्र गोवर्धन परिक्रमा के अभिन्न अंग होते हैं।

भक्त गण संबद्ध स्थानो पर उपलब्ध करायी जाने वाली सुविधाओं का इस्तेमाल करते हुए कुंड एवं नदी में पवित्र स्नान कर सकते हैं। परंतु वे अपने गंदे कपड़ों को राधा कुंड, श्याम कुंड अथवा मानसी गंगा में धो नहीं सकते, क्योंकि यह पवित्र है और ठाकुरजी की लीला का स्वरुप है।


Radha Kund\Shyam Kund, North end of the Giriraj



View of Girirajji sunk in the ground at Mansi Ganga



श्री गिरिराजजी की संपूर्ण परिक्रमा सात कोस २१ किमी की है। कोई भी व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार गोवर्धन परिक्रमा को दो भागों में विभाजित कर दो दिन में पूर्ण कर सकता है। इन दोनो परिक्रमाओं को छोटी और बड़ी परिक्रमा के नाम से जाना जाता है।

परिक्रमा के मध्य में गोवर्धन गांव पड़ता है। इसकी उत्तर दिशा में राधा कुंड गांव एवं दक्षिण दिशा में पुछारी गांव स्थित है। गोवर्धन दान घाटी से अन्योर, पुछरी, जतिपुरा होते हुए पुनः गोवर्धन आने की परिक्रमा बड़ी परिक्रमा कहलाती है, जोकि 4 कोस (12 किमी) की होती है। गोवर्धन से उद्धव कुंड होते हुए राधा कुंड और फिर यहां से वापस गोवर्धन आने वाली परिक्रमा छोटी परिक्रमा कहलाती है। यह परिक्रमा ३ कोस (६ किमी) में संपन्न होती है।

परिक्रमा भक्त लोग अपनी इच्छा के अनुसार करते हैं।

इनमें से संपूर्ण परिक्रमा (७ कोस) को एक ही दिन में समाप्त करना उचित रहता है।

सात कोसी गिरिराज परिक्रमा में बहुत सी छोटी-छोटी परिक्रमाएं हैं, जैसे मानसी गंगा, राधा कुंड, गोविंद कुंड इत्यादि।

जय श्री कृष्ण राधा कृष्ण


An ariel view of bhakts doing parikrama towards the Punchri side of Shri Govardhan



Jai Giriraj Govardhan

Jai ShreeNathji Prabhu

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