श्रीनाथजी प्रागट्य वार्ता में विविध बिन्दुओं पर, श्रीनाथजी ने स्वयं कई जगह यह उल्लेख किया है कि वे मेवाड़, नाथद्वारा से पुनः व्रज लौटेंगे।श्री वल्लभाचार्य ने भी यही कहा है।
श्री वल्लभाचार्य ने दामोदरदास से यह उल्लेख किया कि “चूँकि, श्रीजी ने अपने मन्दिर में एक शिखर को आदेश दिया है, जिसका अर्थ यह है कि वे कुछ समय तक यहाँ रहेंगे। मुसलमान राजा युद्ध के वातावरण तैयार करेंगे और श्रीनाथजी फिर इस स्थान को छोड़ कर कहीं और (मेवाड़) जाकर रहेंगे”। “कुछ काल पच्चात वे व्रज लौट आऍंगे और तब उनका मन्दिर गिरिराजजी के ‘पूँछरी' भाग में बनेगा। ठाकुरजी अपनी दिव्य खेल श्री गोवर्धन पर दिखायेंगे और ब्रह्म शिखर पर अपनी तीसरी लीला करेंगे”।
श्रीनाथजी ने भी एक समय अजब कुँवारी से कहा, “ श्रीगुंसाईजी जब तक गिरिराजजी पर सजीव हैं वे व्रज छोडकर नहीं जाएँगे। उनके गोलोक पधारने के बाद वे मेवाड आएँगे और सैंकड़ों वर्ष वहाँ रहकर अपनी लीला दिखाते रहेंगे। जब गुँसाईजी दोबारा जन्म लेंगे और उन्हें लेने आएँगे तो वे व्रज वापस लौट जाएंगे और कुछ वर्ष गिगिराज जी पर लीला करेंगे।
श्रीनाथजी ने दो जलभरिया से कहा:-
''श्री गिरिराजजी ने तुम दोनों को अपार साहस और शौर्य से भर दिया है ताकि तुम मलेच्छों का नाश कर सको। लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों ऐसा नहीं करो क्योंकि मुझे अपनी यात्रा को चलायमान रखना है। मुझे कई जगह रुककर अपने भक्तों पर कृपा करनी है। ये सब मेरी प्रतीक्षा सैकड़ों साल से कर रहे हैं जब यह सब कार्य पुरा हो जाएगा, मैं व्रज लौट आऊँगा और कुछ काल तक व्रज में रहूँगा। तब तुम दोनों मेरी लीला में प्रवेश करना; अभी इस युद्ध को रोक दो”।
श्रीजी नाथद्वारा में लगभग अपनी निर्धारित रहवास की अवधि पूर्ण कर चुके हैं। मेवाड़ के लिए श्रीनाथजी ने व्रज को छोड़ा था क्योंकि उन्होंने अपने भक्त अजब कुवाँरी को यह वचन दिया था।
नाथद्वारा (सिंहाड़) पहुँच कर उन्होंने उसी जगह रहने की इच्छा प्रकट की थी जहाँ अजब कुवाँरी की हवेली थी। यह हवेली समय के अंतर से और कई राजाओं के लालच के कारण काल केगाल में समा गयी। जब श्रीजी नाथद्वारा में आकर रहने लगे उस समय अजब कुवाँरी का भौतिक शरीर इस संसार को छोड़ चुका था, फिर भी आत्मिक रूप में वह अपने प्रिय श्रीजी को सेवा में जरुर लगी रही होगी।
नाथद्वारा वास का नियत समय अब समाप्त होने आ रहा है। उसके बाद श्रीजी अपने वास्तिविक निवास, व्रज मण्डल में लौटने के लिए स्वतंत्र होंगे। व्रज के रहिवासी सचमुच सौभाग्यशाली हैं जो उन्हें श्रीनाथजी के सजीव दर्शन होंगे। वही श्रीनाथजी श्री राधाकृष्ण की गतिशील शौर्य हैं आज के युग में।
जो भक्त श्री राधाकृष्ण की खोज में हैं, वह श्रीनाथजी की कृपा पा सकेगा; श्री राधा कृष्ण का युगल स्वरूप ६०५ वर्ष पहले श्रीनाथजी के रुप में एक बार फिर श्री गोवर्धन से प्रकट हुए।
बहुत जल्द श्रीजी गिरिराज गोवर्धन पर लौट आएँगे और अपनी लीला दिखाते रहेंगे। जैसा कि गर्ग संहिता में कहा गया है- ‘गिरिराज गोवर्धन रूपी तीसरी और आखिरी लीला ब्रह्म शिखर पर होगी’।
जय हो प्रभु!
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