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नाथद्वारा में श्रीनाथजी की हवेली

नाथद्वारा में श्रीनाथजी का मंदिर एक भव्य हवेली के स्वरुप में निर्मित हुआ है, जहां पर वह अपने पूर्ण स्वरुप में निवास करते हैं।

जब श्रीनाथजी गिरिराज गोवर्धन यहाँ पधारे, इस जगह के मूल नाम ‘सिंहाड’ को बदल कर नाथद्वारा कर दिया गया।


यह ठाकुरजी का घर है तथा सभी सेवक और सच्चे भक्त यह जानते हैं कि समुचित भाव से युक्त अनेक लोगों ने इस दिव्य उपस्थिति को अनुभव किया है। आज तक हर प्राचीन दिनचर्या का पूरी तरह से पालन किया जाता है। श्रीजी की उपस्थिति पूर्णता से परिपूर्ण है, इसलिए सभी उनकी जीवंत उपस्थिति को इस हवेली में पूरी तरह से स्वीकार करते हैं।

स्वयं ईश्वर ही यहां पर सर्वाधिक जीवंत स्वरुप में निवासकरते हैं।

Shree Thakurjee Himself lives here in the most alive Form


हर तरफ के संकरे मार्ग एक मुख्य चौक की ओर जाते हैं, जो श्रीजी की हवेली के मुख्य दरवाजे की ओर ले जाते हैं। यह विशाल दरवाजा ‘लाल दरवाजा’ कहलाता है, जो रात के समय बंद रहता है। (हवेली में तीन प्रवेश मार्ग हैं, जिनका वर्णन बाद में हवेली की विस्तृत जानकारी के साथ किया गया है)।

हम अगर सुबह बहुत जल्दी हवेली पर पहुँच जाते हैं, तो लाल दरवाज़े के छोटे गेट से भीतर प्रवेश करते हैं।


The small gate of Lal Darwaza


परिसर के अंदर, हम श्रीजी की हवेली के द्वार पर बैठ सकते हैं। भोर का समय बहुत शांत और निरभ्रता से परिपूर्ण होता है। सिर्फ़ कुछ एक संतरी दरवाजे पर होते हैं। पूरा शहर निंद्रा में होता है। किंतु कुछ समय बाद ही यह सर्वाधिक भीड़ भरा स्थान बन जाता है। यहां पर सभी अपने प्रिय ठाकुरजी के दर्शन के लिए उपस्थित होते हैं।


इस जगह पर ऐसे महसूस होता है की मैं कोई बहुत पुराण समय या फिर किसी पुराने जनम में पहुँच जाती हूँ, गुरुश्री और महा गुरुश्री के साहचर्य में।


धीरे-धीरे पहले आने वाले, मुखियाजी व कीर्तनकार का प्रवेश होता है, जो श्रीजी को जगाने के लिए वीना वादन करते हैं।

हमने सभी प्रारंभिक गतिविधियों को देखते हैं जो सामान्य रुप से साक्षी नहीं होते; क्योंकि इस अनुभव के लिए यह मंगला दर्शन के कुछ घंटे पहले पहुँच जाना होता है।

शीध्र ही, प्रारंभ में आने वाले कुछ भक्त यहां एकत्रित होने लगते हैं, और दुकानदार जो पुष्प, दुग्ध तथा कुछ अन्य सामग्रियों को बेचने के लिए अपनी दुकान लगते हैं। ये सभी सामग्री श्रीजी की सेवा में अर्पित की जाती हैं।


हवेली मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार को श्रीजी के सुरक्षा कर्मियों द्वारा संरक्षित किया जाता है।

मंगल दर्शन से राजभोग दर्शन तक के लिए भक्तों को प्रवेश की अनुमति दी जाती है, जिसके बाद श्रीजी के विश्राम का समय होता है।

यद्यपि हवेली को बंद नहीं किया जाता, परंतु प्रवेश को उत्थापन दर्शन तक वर्जित रखा जाता है। यह अवस्था श्रीजी के जागने तक ऐसे ही रहती है, और भक्त अंदर तभी जा सकते हैं जब श्रीजी जाग जाते हैं और अगले चार दर्शन के लिए तय्यार होते हैं।


कैमरा और फोन की सख्त जांच होती है; भीतर ले जाने के लिए अनुमति नहीं है। एक काउंटर पर जमा कर दिया जाता है। मुख्य गेट के भीतर फोटोग्राफीपूरी तरह से निषिद्ध है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जहां पर स्वयं ईश्वर की जीवंत उपस्थिति है, वहां पर कोई व्यक्ति दैवीय अनुमति के बिना फोटो नहीं खींच सकता। और क्योंकि श्रीनाथजी को अपनी हवेली में हर एक स्थान पर जाने के लिए स्वतंत्रता है, कोई नहीं जानता कि वे किसी विशेष समय पर कहां होंगे।


हवेली के भीतर पहुँच कर प्रत्येक को असाधारण ऊर्जा अपने प्रभाव में ले लेती है। सैकड़ों हजारों भक्त यात्री अग्र पंक्ति में अग्रसर होने के लिए एकत्रित हो जाते हैं, ताकि दर्शन खुलने पर वे श्रीनाथजी की पहली झलक ले सकें। जब वह दर्शन देते हैं उस समय इसकी उत्कंठा अद्भुत होती है।

अनेक सेवक अपने विभिन्न प्रकार के कार्य में व्यस्त होते हैं। इसमें काफी अफरा - तफरी की स्थिति होती है और हवेली के अंदर एक लघु नगर जैसी अनुभूति होती है।


श्रिंगार दर्शन से राजभोग दर्शन तक हम हवेली परिसर के भीतर ही रहते हैं।यह क्षण बहुत ही दिव्य और अनमोल होते हैं क्योंकि अधिकांश समय स्वयं श्रीजी हमारे साथ उपस्थित होते हैं। उन्हें हवेली के सभी कार्य जो उनकी हवेली में घटित हो रही होती है देखने में आनंद होता है। कई बार ऐसी स्थिति आयी है, जब वे आश्चर्य चकित हो गए हैं और अन्य अवसरों पर श्रीनाथजी बहुत दुखी भी हुए हैं, ये देख कर की उनकी हवेली की किस हद तक दुर्दशा हो गई है। जिन्हें हवेली की देख भाल करनी चाहिए वे भाव हीन हो गए हैं।


हमारा जब सौभाग्य होता है और श्रीजी कृपा होती है, हम कीर्तनिया गली में बैठते हैं। वहाँ से महसूस करते हैं कि श्रीनाथजी कीर्तन का इतना आनंद उठा रहे हैं। वह अपने गायक एवं कीर्तनियों की नकल भी उतारते हैं; उसकी भी जो उनके लिए वीणा बजाते हैं।


ये विशिष्ट क्षण मेरे सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिव्य क्षणों में से हैं, क्योंकि श्रीजी ने मुझे उनके विचार चिंतन सुनने का अवसर दिया और अन्य अनेक दिव्य घटनाओं का हिस्सा बनाया है।

कभी तो वे कमल चौक में बैठे वृद्ध महिलाएँ जो बेहद प्राचीन ग्राम्य स्वर में गायन करती हैं, श्रीजी उनके गाने की नकल कर के बहुत हँसते हैं। वह अपने विचारों एवं स्वभाव प्रेरित स्वरुप में बहुत नटखट हैं।


(संभवतः उनकी अनुमति से मैं कुछ ऐसी कहानियों को साझा करने में सक्षम हो सकी हूं जो उनकी दैवीय क्रीड़ा से घटित हुयी है)।


मेरे सर्वश्रेष्ठ क्षण ध्वजाजी एवं प्रसाद घर पर रहे हैं, जहां पर हमारे साथ श्रीनाथजी की उपस्थिति पूर्ण होती है।




श्रीनाथजी की हवेली का विस्तृत विवरण


हवेली श्रीनाथजी बाबा के जीवंत उपस्थिति से बेहद जागृत है। उनकी जीवंत उपस्थिति एवं ऊर्जा को पूर्ण हवेली में महसूस किया जा सकता है, विशेषकर ‘डोल्टी बारी’ में, वह हाॅल जहां से हम दर्शन करते हैं।


इस हवेली को श्री गोविंदजी के दिशा-निर्देशन में निर्मित किया गया था, जो श्रीनाथजी के नाथद्वारा आने के समय तिलकायत थे। श्रीनाथजी के आदेश पर श्री गोविंदजी ने मंदिर के निर्माण की तैयारियां प्रारंभ करी।

इस जगह पहुँच कर श्रीजी ने आदेश दिया, ‘‘मेरी भक्त अजब कुमारी बाई यहां रहती थी, इसलिए मेरे मंदिर का निर्माण यहीं पर किया जाए। राणाजी ने यह इच्छा व्यक्त की कि मैं उदयपुर में रहूं, परंतु उनके इस मनोरथ को मैं बाद में पूरा करुंगा। वर्तमान समय में अजब कुँवर बाई स्थल पर मेरे मंदिर का निर्माण करो। मैं यहां पर लंबे समय तक रहूंगा। यह स्थान मुझे व्रज की याद दिलाता है। मैं यहां के पर्वत को पसंद करता हूं। यहां पर बनास नदी भी है, जो यमुनाजी का प्रतिनिधित्व करती है। यह अजब कुंवरी की भूमि है, मैं यहीं पर रहूंगा। सभी गुसाँई बालक से कहो कि उनकी बैठक यहाँ बना लें।’’


View of Bananas river and the Giriraj at Nathdwara



ठाकुरजी के दिव्य आदेश का पालन करते हुए श्री गोविंदजी ने गोपालदास उस्ता को आदेश दिया कि वो अधिकतम लोगों को लेकर सुनिश्चित करें कि श्रीनाथजी का मंदिर शीघ्रातिशीघ्र तैयार हो जाए। मंदिर निर्माण का कार्य सैकड़ों मजदूरों के साथ प्रारंभ हुआ, दिन-रात चला एवं कुछ माह में ही श्रीजी का मंदिर बन कर तैयार हो गया।

1672 ई फाल्गुन वद सातम, स्वाती नक्षत्र में, शनिवार के दिन श्री दामोदर महाराजजी (श्रीदाऊजी) ने मंदिर हवेली में श्रीनाथजी के पाट की स्थापना की। इसे वैदिक रीति के अनुसार वास्तु प्रतिष्ठा और पूजन के साथ पूरी तरह से संपन्न किया गया। धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार के सभी अनुष्ठान व पर्व यहां पर प्रारंभ हो गए, ठीक श्री गिरिराज के समान। उस समय से श्रीजी ने यहां पर मेवाड़ में प्रसन्नतापूर्वक रहना प्रारंभ कर दिया। इसके निकट श्रीनाथजी की गायों के लिए एक गोशाला का भी निर्माण किया गया।


श्री दाऊजी महाराज ने स्नेहपूर्वक श्रीजी की देख-भाल की और सभी उत्सव व महोत्सवों को मनाया। सभी प्रकार का श्रृंगार भी वे ख़ुद ही करते थे।

श्रीजी गिरिराज गोवर्धन से यहां पर पहुंचने की रथ यात्रा में कुल 2 वर्ष, 4 माह, 7 दिन का समय लगा। मार्ग में उन्होंने अनेक भक्तों की इच्छा पूर्ति करी।

हवेली में अनेक छोटे-बड़े कमरों के साथ काॅरिडोर, हाॅल और आंगन का समावेश होता है।

इसका एक भाग तिलकायतजी के महल से जुड़ा हुआ है, जिसे ‘मोती महल’ कहते हैं, जहां से वह सीधे मंदिर में प्रवेश करते हैं। तिलकायत उनकी शुद्धता के स्तर को बरकरार रखने के लिए बाहर के प्रवेश का उपयोग नहीं करते, क्योंकि निज मंदिर की सेवा में श्रीनाथजी से प्रत्यक्ष संपर्क में होते हैं।


श्रीनाथजी की हवेली ठेठ राजस्थानी शैली की है। इसकी दीवारों पर सफेदी की गयी है, जो राजस्थानी कला शैली का प्रतिनिधित्व करती है। कुछ स्थानो पर श्रीकृष्ण लीला की चित्रकारी है। गोपियों को प्रत्येक स्थान पर विभिन्न सेवा भाव के साथ उकेरा गया है। इन सभी को बड़े चटख रंगों में चित्रित किया गया है। श्रीजी के द्वारपाल पूरी हवेली में फैले हुए हैं।

हवेली के कई हिस्से जनता के लिए नहीं खुले है, क्योंकि ये भाग श्रीजी के व्यक्तिगत निवास-स्थल हैं। वहां पर केवल भीतरया सेवक ही जा सकते हैं। यह शुद्धता के लिए आवश्यक है। श्रीजी की सेवा के लिए उच्च स्तरीय शुद्धि की आवश्यकता है, इसलिए सभी सेवक हर समय स्नान शुद्धि नियम पालते हैं। वे वाह्य सेवकों एवं जनता से संपर्क स्थापितनहीं रखते हैं, उन्हें भीतर आने पर हर बार स्नान करना पड़ता है। ये सेवक ठाकुर जी की व्यक्तिगत सेवा में संलग्न हैं।


इस हवेली में प्रवेश के लिए तीन प्रवेश द्वार हैं:

(श्रीनाथजी की हवेली में अनेक गेट, कमरों और चौक होने के कारण, इसका विवरण इस मुख्य दरवाज़े से शुरू करते हैं)



हवेली का मुख्य द्वार - लाल दरवाजा


यह प्रमुख प्रवेश द्वार है, जहां से जनता दर्शन के लिए जाती है। यह एक बेहद प्राचीन गेट है और आप यहां विशाल लोहे के अवरोधों (यह ठीक उसी प्रकार से है जैसा कि मेवाड़ की अन्य हवेली में देखा जा सकता है, इसकी व्यवस्था शत्रुओं से सुरक्षा के लिए की गयी थी) को देख सकते हैं।



यहां से आप हवेली के मुख्य परिसर में प्रवेश कर सकते हैं। यहां से सीधे एक छोटा चौक है, जहां पर भक्त एकत्रित होते हैं और हवेली में प्रवेश करते हैं। यहां पर पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रवेश की व्यवस्था है, जिसके माध्यम से ये नक्कारखाना में से गुज़रते हैं।

नक्कारखाना प्रवेश द्वार के ऊपर स्थित है। जहां पर एक निश्चित समय पर ड्रम और शहनाई संगीत के गुंजन को सुना जा सकता है। इसके माध्यम से हम गोवर्धन पूजा चौक में प्रवेश करते हैं। यह चौक आयताकार है, जहां पर प्रत्येक वर्ष गोवर्धन अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है।



इससे बिलकुल सीधे सूरज पोली है, जिसमें 9 सीढ़ियां हैं। यह पुरुषों के लिए प्रवेश द्वार है, जिसमें वे पंक्तिबद्ध होकर प्रवेश करते हैं। सूरज पोली के प्रवेश द्वार पर विशाल हाथियों का रुपांकन किया गया है एवं द्वार मार्ग पर गोपियों, श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं, विमान पर देवत्व इत्यादि का चित्रण किया गया है।

यहां से वे रतन चौक में प्रवेश करते हैं, जो हाथी पोली से होकर कमल चौक तक जाता है, जिस पर एक विशाल चांदी का दरवाजा है तथा उस पर विभिन्न लीलाओं का चित्रण किया गया है। इसे बंद करने के लिए जिस ताले का इस्तेमाल किया जाता है, वह काफी विशाल है और इसकी चाभियां भी प्राचीन हैं। मैंने देखा कि भक्त गण इसके सामने भी झुक कर प्रणाम करते हैं। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि यहां की प्रत्येक चीज में श्रीजी की ऊर्जा भरी हुयी है।

इस जगह से पुरुषगण अनार चैक से होते हुए मणि कोठा तक जाते हैं और कीर्तनिया गली से डोलटी बारी (श्रीजी निज मंदिर का मुख्य दर्शन हाॅल) में प्रवेश करते हैं। कीर्तनिया गली वह जगह है, जहां श्रीनाथजी के व्यक्तिगत संगीतकार प्राचीन काल की कविताओं का गायन प्रस्तुत करते हैं। प्रत्येक रचना और राग; दिन, दर्शन, ऋतु, मनोरथ, उत्सव के अनुकूल होती है। कुछ दर्शन में कीर्तनियां श्रीजी के निज मंदिर के बाहर एक छोटे से स्थान पर प्रवेश करते हैं और उस समय व काल के अनुसार भजन गाते हैं। श्रीजी के भीतर भवन का द्वार भी यहीं से जाता है।

इस द्वार से केवल तिलकायत परिवार एवं भितरियाओं को ही प्रवेश की अनुमति है और यहां पर शुद्धता के कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है।


गोवर्धन चौक से दाहिने 9 सीढ़ियों का एक चबूतरा धौली पटिया की ओर जाता है। यह एक पैदल पथ के समान है, जो विभिन्न द्वार से जुड़ा हुआ है। बायीं ओर सिंह पोली है, जो कमल चौक की ओर जाती है। यह महिलाओं के एकत्रण का स्थल है, जहां से वे पंक्तिबद्ध होकर जाती हैं। वे यहां से श्रीजी के दर्शन के लिए अनार चौक से डोलटी बारी के लिए जाती हैं। अनार चौक के प्रवेश द्वार पर भी श्रीकृष्ण लीला के सुंदर चित्रों का अंकन किया गया है। द्वार के प्रत्येक तरफ एक गोपी एक शिशु को अपने साथ पकड़े हुए खड़ी है। डोलटी बारी केंद्रीय कक्ष है, जहां से भक्त श्रीनाथजी का दर्शन करते हैं।


यहां पर पुरुषों व महिलाओं के लिए पृथक दर्शन की व्यवस्था है, क्योंकि यहां पर काफी भीड़ हो जाती है।

दर्शन के प्रारंभ की होने वाली आरती में पुरुष और महिलाएं दोनो प्रवेश करते हैं। इसमें पहली दो पंक्तियों में केवल महिलाओं के खड़े होने की व्यवस्था है और पुरुषगण पीछे की पक्तियों में खड़े होकर दर्शन करते हैं। इस पृथक्करण को बेहतर नियोजन की दृष्टि से किया गया है, क्योंकि यहां पर दर्शन के समय बहुत अधिक भीड़ हो जाती है। यह हाॅल, डोलटी बारी बहुत बड़ा नहीं है और प्रत्येक बार के दर्शन में सीमित संख्या में ही भक्त एकत्रित हो सकते हैं। इसके बाद यहां पर महिलाओं और पुरुषों को एक-एक कर के प्रवेश करने की व्यवस्था है।


यहां का नियम यह है कि जब तक आखिरी भक्त को दर्शन नहीं प्राप्त हो जाता, तब तक इसे बंद नहीं किया जा सकता। चाहे इसमें कितना भी समय क्यों न लग जाए।

दर्शन को बंद करने का कोई निर्धारित समय नहीं है। कुछ निश्चित पर्वों एवं महत्वपूर्ण अवसरों पर श्रद्धालुओं की पंक्ति मुख्य द्वार लाल दरवाजे तक बढ़ जाती है। ठाकुरजी दर्शन देने के समय लगभग एक घंटे तक खड़े रहते हैं और किसी भी भक्त को निराश नहीं करते हैं। वास्तव में यह दृश्य देखने योग्य होता है।

सामान्य रुप से हम दर्शन को पहले चक्र में पूरा कर लेते हैं और उसके बाद अनेक बार मैं अनार चैक के एक तरफ खड़ी हो गयी हूं और मैंने देखा है कि किस प्रकार यहां पर भक्त आते हैं और उनके मन में कितना अद्भुत भाव होता है।

भक्त दर्शन चूक न जाएँ इसलिए झपटिया और द्वारपाल उनकी मदद करते हैं।

दर्शन को सरल बनाने के लिए विभिन्न स्तरों पर लकड़ी के मंच बनाए गए है।

विभिन्न मौसमो और पर्वों के अनुसार श्रीनाथजी के लिए इस हॉल डोलटी बारी में अनेक झाकियां बनाई जाती हैं, जिसमें हिंडोला, जेष्ठ नौका विहार, तीज एवं डोल उत्सव उल्लेखनीय है।

रात में इस विशाल कक्ष को खाली कर साफ किया जाता है। लकड़ी के सभी मंचों को कीर्तनिया गली में ले जाया जाता है। यह स्थान अलंकृत करते है और इसे श्रीजी की क्रीड़ा के लिए तैयार किया गया है। मंदिर के बंद हो जाने पर कोई भी व्यक्ति यहां किसी भी स्थान पर प्रवेश नहीं कर सकता। बाहर बैठे हुए द्वारपाल इसकी पूरी निगरानी करते हैं।

दिवाली के उत्सव के दौरान श्री नवनीत प्रिया जी के स्वरुप को दर्पण जटित हटदी में स्थित रतन चौक ले जाया जाता है। शरत पूर्णिमा के अवसर पर यहां पर रास लीला की जाती है।

अनार चौक से एक जीना श्री ध्वजाजी की ओर जाती है। जो लगभग पूरे दिन खुला होता है। श्री ध्वजाजी तक जाने वाले अन्य प्रवेश द्वार आंतरिक गलियारे में स्थित हैं, जो दूधघर एवं पान घरिया होते हुए ध्वजाजी तक जाते हैं। ध्वजाजी तक जाने वाली तीसरी सीढ़ी श्रीनवनीत प्रियाजी के मंदिर के चौक के सामने स्थित है। इस क्षेत्र में फूल घर भी स्थित है।

कमल चौक मुख्य चौक के समान है, जो विभिन्न दर्शनों के बीच सभी भक्तों के लिए खुला होता है। इस चौक के केंद्र में 24 पंखुड़ियों वाला एक विशाल कमल है, जो श्वेत संगमरमर से निर्मित है।

अनेक भक्त यहां पर बैठ कर श्लोकों का वाचन करते हैं और भजन गाते हैं। एक तरफ महिलाएं सब्जियों के झोलों के साथ बैठी होती हैं और उसे भोग के लिए तैयार करती हैं, वहीं कुछ पंडित यहां पर बैठ कर श्रीमद भागवत जी का वाचन करते हैं।



अनार चौक के ठीक सामने ध्रुव बारी है। इस बारी के प्रत्येक पैनल में श्रीकृष्ण की 8 सखियों की कलाकृति है। भक्तगण ध्रुव बारी पर नारियल की माला बांधते हैं। वे स्वास्तिक भी बनाते है। एक प्रकार से यह श्रीनाथजी से मनोकामना पूर्ति का भाव है।

हाथी पोली के सामने समाधानी विभाग स्थित है। जहां पर सभी प्रकार की भेट और मनोरथ जमा की जाती है।यहां पर गोशाला भेंट भी अर्पित की जाती है। एक काउंटर से प्रसाद भी प्राप्त किया जा सकता है, जो आप की रसीद के अनुसार होता है।

अनार चौक के पीछे प्रसाद भंडार स्थित है। यहां पर काफी अफरा-तफरी का माहौल होता है। अनेक अवसर पर मैंने यह देखा है यहां पर कितनी चहल-पहल एवं गतिविधियां जारी रहती हैं। निर्मित किए गए सभी प्रसाद यहां पर एकत्रित होते हैं, दर्जनो सेवक प्रसाद को सींक की डलिया एवं धातु के बर्तन में ला कर एकत्रित करते हैं। यहां पर सेवक गण उस दिन के प्रसाद के हिस्से को प्राप्त करने के लिए भी आते हैं। प्रत्येक सेवक को उसकी सेवा के अनुसार कुछ प्रकार का प्रसाद निर्धारित मात्रा में प्राप्त होता है।

प्रसाद भंडार के सामने एक संकरा गलियारा है, जो श्रीजी की सेवा के आंतरिक कमरों की ओर जाता है।



मोती महल प्रवेश द्वार

इस प्रवेश द्वार में बाहर के मुख्य चौक से पहुंचा जा सकता है, जो मोती महल की ओर जाता है। हवेली के मुख्य प्रवेश द्वार के समान यहां पर भी सुरक्षाकर्मी रहते हैं और यहां पर आने वाले सभी भक्तों के फोन और कैमरा के लिए जांच होती है।

मोती महल तिलकायत परिवार का निवास स्थल है। यह श्रीजी हवेली की तुलना में काफी विशाल है और इसका रख-रखाव भी श्रीनाथजी हवेली से काफी बेहतर है (यह दुख व क्षोभ का विषय है)।



इस प्रांगण में श्रीनाथजी जी यात्रा में प्रयुक्त होने वाले प्राचीन रथ भी रखे हैं, और इसमें से कुछ भक्तों के लिए प्रदर्शित किए हैं।। थोड़ा आगे चलने के बाद भक्त गण आंतरिक गलियारे में प्रवेश करते हैं, जो महाप्रभुजी की बैठकजी से हो कर गुजरता है।

उसके बाद भक्त श्रीकृष्ण भंडार में पहुंच जाते हैं (यह अजब कुमारी निवास का मूल स्थल है) और इसके सामने श्री नवनीत प्रियजी का निज मंदिर है।

श्रीकृष्ण भंडार वही स्थल है जहाँ श्रीनाथजी प्रभु का रथ अटक गया था, और ठाकुरजी ने यहीं रहने आक हुकुम करा था। आज के समय में कृष्ण भंडार एक प्रशासनिक कार्यालय है, जहां पर आप कई प्राचीन छवि के दर्शन कर सकते हैं। हम यहां से मांगलिक काले धागे भी प्राप्त करते हैं। भक्त गण इसका उपयोग नकारात्मक शक्तियों से अपने आप को सुरक्षित करने के लिए करते हैं। प्रत्येक काले धागे के साथ एक तुलसी कंठी भी दी जाती है।


यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां पर मैंने असाधारण ऊर्जा को महसूस किया। अनेक अवसर ऐसे हैं जब इस स्थल को छोड़ने का मन नहीं करता। यह स्थान पर हमेशा कुछ असाधारण अनुभूति होती हैं।

अक्सर मैं इस स्थल पर कुछ देर के लिए रूक जाती हूँ। मैं इसका विवरण इसलिए कर रही हूं कि क्योंकि मैं वास्तव में यहां के स्पंदन से अपने आप को जुड़ी पाती हूँ।


इस क्षेत्र से आप सीधे श्री नवनीत प्रियजी के दर्शन के लिए जा सकते हैं तथा गोवर्धन चौक में प्रवेश कर सकते हैं और दर्शन की मुख्य पंक्ति में सम्मिलित हो सकते हैं।


यह वो चौक है, जहां से हम दर्शन पूर्ण करने के बाद रतन चौक से हो कर डोल्ती बारी से बाहर निकलते हैं। एक नए सीढ़ियां के मार्ग को हाल ही में निर्मित किया गया है, जो सीधे ध्वजाजी से जुड़ा हुआ है। इसलिए यदि समग्रता में देखा जाए तो यहां पर ध्वजाजी एवं श्रीसुदर्शन चक्र तक पहुंचने के लिए कुल तीन सोपान मार्ग हैं।

तिलकायत सदैव ही यहां से प्रवेश करते हैं और उनका एक निजी गलियारा है, जो उन्हें सीधे श्रीनाथजी के निज मंदिर तक ले जाता है। मुखियाजी व मुख्य चयनित सेवकों के अतिरिक्त वे ही केवल ऐसे लोग हैं, जो श्रीजी के निजी स्थान पर जा सकते हैं।



प्रीतम पोली प्रवेश द्वार


तीसरा प्रवेश द्वार परिक्रमा मार्ग से हो कर जाता है, प्रीतम पोली से घौली पटिया तक, यहां से कमल चौक तक जाया जा सकता है। यहां पर भी अन्य दो दरवाजों के समान लोगों की काफी गहन जांच होती है।

इस गेट से होकर बायीं तरफ एक नए चौक का निर्माण किया गया है। फूलों की सभी दुकानो को यहां पर स्थानांतरित किया गया है। यह अत्यधिक आकर्षक है, क्योंकि यहां पर विभिन्न सुगंधि वाले पुष्प सेवा के लिए बेचे जाते है।। ये लोग अपनी दुकानों को सुबह के दर्शन तक खोले रखते हैं। इसके बाद इस स्थान का उपयोग ठाकुरजी के आभूषणों व वस्त्रों की दुकानो के लिए किया जाता है।

यहां से हम कमल चौक, समाधान विभाग के प्रवेश द्वार और धौली पटिया चौक के प्रवेश द्वार तक पहुंचते हैं।

दैनिक दर्शन के समय की घोषणा श्याम पट्ट एवं इलेक्ट्राॅनिक बोर्ड के माध्यम से की जाती है, जिसे बाहर प्रदर्शित करते हैं। ऐसे कई अवसर आते हैं जब भीड़ अधिक होती है, जो दर्शन के लिए बाहर के गेट तक फैल जाती है। ऐसे समय में दर्शन खुले रहते हैं, जब तक हर भक्त ठाकुर जी की झांकी का दर्शन नहीं कर लेते हैं।


इस हवेली में लगभग 4000 सेवक का स्टाॅफ है, ये सभी सेवा एवं अन्य कार्यों में संलग्न रहते है। प्रत्येक दिन की गतिविधियां ठीक उसी प्रकार से नियोजित रहती हैं, जैसा कि वर्षों पूर्व श्री गुसाइंजी ने निर्धारित किया था। सेवा में हर प्रकार की उत्कृष्टता के लिए उच्च स्तरीय ध्यान रखा जाता है। यहां पर श्री यमुनाजी से एक विशेष झरी में जल को लाया जाता है। प्रत्येक दर्शन के अवसर पर संगीतज्ञ सजीव संगीत का प्रस्तुतीकरण करते हैं।


श्रीजी प्रतिदिन वीणा के तारों के झंकार से जगते हैं। यहां पर शास्त्रीय रागों को प्रस्तुत किया जाता है, जिसका निर्धारण वर्षों पूर्व करा था।


हवेली मंदिर की हर सेवा और गतिविधियां केवल श्रीजी के लिए होती हैं, तथा उनके आराम व आनंद के लिए निर्धारित होती हैं। यहां पर पूरा ध्यान रखा जाता है की उन्हें किसी प्रकार की असंतुष्टि न हो।



श्रीनाथजी का निज मंदिर


श्रीजी का मंदिर एक घर जैसा प्रतीत होता है, जहां पर श्रीजी एक बेहद जीवंत स्वरुप में निवास करते हैं। श्रीजी के निज क्षेत्र की छत खपड़ैल की है।


इस भावना से यहां पर है, क्यों की लगभग 5237 वर्ष पूर्व (2017 से गणना), जब श्रीजी व्रज में श्रीकृष्ण के रुप में निवास करते थे, तब उनकी बाल लीला यशोदा मैया और नंद बाबा (इस लीला के दौरान उनके माता-पिता), के घर में हुआ करती थी। इसलिए इस स्थान को ठीक उस परिवेश को ध्यान में रख कर निर्मित किया गया है, जिस परिवेश में ठाकुर जी अपने मूल अवतार अर्थात् श्री राधाकृष्ण के रुप में व्रज में निवास करते थे।

मंदिर के स्वरुप को भी इस प्रकार से निर्मित किया गया है, जहां पर श्रीजी व्रज के समान अपने घर में होने जैसा महसूस करें। (इस मंदिर का विस्तृत विवरण दर्शन से संबद्ध अध्याय में उपलब्ध कराया गया है)।


श्रीजी की सेवा भाव एक बालक स्वरूप में करी जाती है, इसलिए उनकी दिनचर्या और दर्शन देने की प्रदाती बहुत ही सरल तरीके से होती है।

प्रत्येक क्षेत्र में जो सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है वह केवल शुद्धि की है। पूजन में, उसकी तैयारी में, उसकी सामग्री में, संगीत में, वस्त्र में, सुगंध में, आभूषण में, भेंट में और चढ़ावे से लेकर ठाकुरजी की सेवा में संलग्न सेवक, विशेषकर भीतरया कहलाने वाले सेवक, जो आंतरिक कक्षों में कार्य करते हैं, उनके लिए शुद्धि परम आवश्यक है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह है कि आप यहां पर शुद्ध भाव से उनके दर्शन के लिए आएं और शुद्ध मन से सेवा करें।

इसलिए एक बेहद सरल एवं सहज ईश्वरीय स्वरुप होने के कारण शुद्धता के स्तर को बरकरार रखना एक परम आवश्यकता है। उनके प्रति सामीप्य का भाव रखने वाले लोग अर्थात सेवक गण इस भाव से भली-भांति परिचित होते हैं, क्योंकि उन्हें ठाकुर जी की जीवंत उपस्थिति की अनुभूति होती रहती है। प्रत्येक व्यक्ति को सेवा करते समय पूर्ण सजग रहने की आवश्यकता होती है।


यहां पर श्रीजी की सेवा के लिए आज भी हाथ पंखी का उपयोग किया जाता है। एक छोटे से स्थान पर बैठ कर सेवक बाहर की ओर से हाथ की पंखी से सेवा करने के लिए तैयार रहता है। यह स्थान श्रीनाथजी के निज मंदिर से प्रत्यक्ष रुप से जुड़ी है। कपड़े की पंखी श्रीजी के ऊपर से एक यांत्रिक पंखे के समान गुजरती है।



श्री सुदर्शन चक्र एवं धजाजी


यह अत्यधिक पवित्र स्थल श्रीनाथजी के निज मंदिर के ऊपर, छत पर स्थित है। यहां पर विभिन्न चौक से तीन सोपान मार्गों से पहुंचा जा सकता है।

सुदर्शन चक्र सर्वोच्च शक्ति का स्वरुप है, इसे सभी भक्तों का सुरक्षा यंत्र माना जाता है। इसके चारों तरफ ७ धजा लहराती रहती हैं। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें ७ धजा हैं। यहां पर इत्र (शुद्ध सुगंधित तेल का सांद्र स्वरुप) चढ़ावे के साथ सेवा की जाती है।

शुद्ध रूई में सुगंधि लगा कर सुदर्शन चक्रको अर्पण करते है। भोग भी लगाया जाता है। इसके लिए केवल निर्धारित सेवक ही इन सीढ़ियों पर चढ़ने का अधिकारी होता है और इस सेवा को पूरा कर सकता है।

मुख्य छत के शीर्ष पर किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है, क्योंकि इसके नीचे श्रीनाथजी खड़े हैं। इसका दर्शन नीचे से किया जाता है और इत्र के चढ़ावे को भक्त को प्रसाद के स्वरुप में वापस कर दिया जाता है।


इस ऊंचाई से यहां की आस-पास की पहाड़ियों दिखती है। यह एक सुरम्य स्थल है, जहां पर आप शांति और पवित्र परिवेश में कई घंटे बैठ सकते हैं। दर्शन के बीच समय होता है, हम सामान्य रुप से यहां पर बैठते हैं और अपने आस-पास श्रीजी की बेहद सशक्त उपस्थिति को महसूस करते हैं।



नवनीत प्रियाजी का मंदिर


एक हाथ में मक्खन का एक गोला लिए भूमि पर घुटनो के बल चलते बाल कृष्ण के दर्शन हैं।

यहां की सेवा श्रीजी के मंदिर के समान ही है। यह श्रीनाथजी के बाल स्वरुप है। इस मंदिर को बहुत सुबह दर्शन के लिए नहीं खोला जाता, क्योंकि प्रभु का यह बाल स्वरुप है और वह विलंब से जागते हैं। अन्य सभी दर्शनों को श्रीजी के मुख्य दर्शन के 10-15 मिनट बाद खोला जाता है। श्रीनाथजी के दर्शन करने के पश्चात हम यहां नवनीत प्रियाजी - लालन दर्शन के लिए आते हैं।


यहां पर स्थापित स्वरुप श्रीनाथजी की गोवर्धन की यात्रा में आगरे से साथ आए थे। यात्रा के दौरान जब श्रीनाथजी अगर में अन्नकूट का आनंद ले रहे थे, तब श्री नवनीत प्रियाजी अन्नकूट उत्सव के समय गोकुल से यहाँ पधारे थे। श्री नवनीत प्रियाजी, जो बाल क्रिशन के स्वरूप हैं, गोकुल में श्री गुसाइंजी विठ्ठलनाथजी के व्यक्तिगत कृष्ण आराध्य थे।जब से श्रीनाथजी नाथद्वारा पधारे वे श्रीनाथजी के साथ नाथद्वारा बाल स्वरुप में रह रहे हैं।


श्रीजी की सेवा के लिए आवश्यक सर्वाधिक महत्वपूर्ण है भाव एवं शुद्धि है, वरना वह श्रीनाथजी का जीवंत अहसास महसूस नहीं कर पाएगा, और नाथद्वारा सिर्फ़ एक और यात्रा ही हो जाएगी।



हवेली के विभिन्न भंडार


आभूषण गृह

यह श्रीजी बाबा का आभूषण कक्ष है, जहां पर उनका सभी प्रकार का आभूषण रखा गया है। यहां पर बैठ कर कारीगर विभिन्न प्रकार के आभूषणों का निर्माण करते हैं।


खर्च भंडार

लाल दरवाजे में प्रवेश करने के बाद बायीं तरफ खर्च भंडार स्थित है। विभिन्न प्रकार की सभी खाद्य सामग्रियां यहां पर रखी गयी हैं। निज मंदिर के निर्माण के पूर्व तक श्रीजी यहीं पर विराजमान थे। यहां पर तेल का कूप भी स्थित है।


श्रीकृष्ण भंडार

यह विभाग श्री नवनीत प्रियजी मंदिर के सामने दाहिनी ओर स्थित है। मंदिर की समूची आय एवं खर्च का लेखा-जोखा यहां पर रखा जाता है। सारे बहुमूल्य स्वर्ण, रजत, किनरिया, वस्त्र, आभूषण एवं माणिक्य को भी यहां पर रखा गया है। यहां पर तुलसी कंठी का प्रसाद एवं श्रीजी के काले धागे को भी प्राप्त किया जा सकता है। श्रीजी की दैनिक सेवा में प्रयुक्त होने वाले कुटे हुए केसर एवं कस्तूरी को तैयार करने वाली स्वर्ण व रजत चक्की यहां पर रखी हुयी है।

(यह अजब कुवांरी के निवास का मूल स्थल है।)


समाधान विभाग

वैष्णव लोग यहां पर किसी भी मनोरथ एवं सेवा के लिए अपना दान दे सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि यह श्रीजी एवं नवनीत प्रियजी के भोग अथवा वस्त्र सेवा की पेशकश है। दर्शन के लिए प्रसाद एवं उपर्णा भी यहां पर प्रदान किया जाता है। मंदिर के गोमाता थूली को भी यहां से बुक किया जाता है।


खास भंडार

यह अनार चौक में स्थित समाधानी के निकट स्थित है। भोग के लिए प्रयुक्त होने वाली सभी सामग्रियों को यहां पर साफ किया जाता है। इसके निकट खांड भंडार स्थित है।


प्रसादी भंडार

यह खास भंडार के सामने स्थित है। श्रीजी का कुल महा प्रसाद यहां से एकत्रित किया जाता है। सेवक गण इसे यहीं से बांटते हैं।


शाक गृह

यह आरती गली में स्थित है। सारी सब्जियों को यहां से एकत्रित किया जाता है।


दुग्ध गृह

यह स्थान टेरेस पर स्थित अनार चैक के ऊपर स्थित है। दूध की मिठाइयों एवं उत्पादों को यहां पर तैयार किया जाता है।


तांबूल गृह - पान गृह

यह दुग्ध गृह के सामने स्थित है। माउथ फ्रेशनर हेतु पान के डिजाइनर बीड़ों को यहां पर श्रीजी की सेवा के लिए तैयार किया जाता है।

गोलकों को विभिन्न स्थान पर रखा गया है, जहां पर भक्त गण अपने भेंट, सोने, चांदी को श्रीजी की सेवा में अर्पित कर सकते हैं।


फूल गृह

यह पान घर एवं दुग्ध घर के बीच स्थित है। यहां पर श्रीजी के लिए सेवा हेतु तैयार किए जाने वाले मालों के लिए सुगंधित व सर्वश्रेष्ठ पुष्पों का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक दर्शन के लिए चार पांच मालों को तैयार किया जाता है, इसमें से किसी को यह नहीं मालूम होता कि इसमें से कौन सा श्रीजी को चढ़ाया जाएगा।


मिश्री घर

दुग्ध घर से ले जाने वाली सीढ़ियां आप को यहां पर ले जाती हैं। मिश्री गैरपरिष्कृत शर्करा है, जिसका इस्तेमाल श्रीजी के लिए अनेक मिठाइयों में प्रयुक्त करने के लिए किया जाता है।


पेड़ा घर

दुग्ध घर से अनार चैक की ओर जाते समय बीचोंबीच पेड़ा घर स्थित है। वैष्णव लोग इस पेड़े को प्राप्त करते हैं, जो श्रीजी के चरण लोक में निर्मित होता है एवं इस पूजा के लिए इसका इस्तेमाल होता है।


पत्तल गृह

यह शाक गृह के आगे स्थित है। श्रीजी के भोग के लिए सभी सामग्रियों को यहां लाया जाता है। यमुनाजी के जल को भी यहां पर रखा जाता है। स्वर्ण एवं रजत पट्टी को भी यहां पर रखा जाता है।


गुलाब घर

यहां पर गुलाब जल एवं गुलाब के इत्र को तैयार किया जाता है। अन्नकूट के लिए भोजन को भी यहां पर तैयार किया जाता है।


वस्त्र गृह

यहां पर सेवा के लिए निर्मित वस्त्रों का भंडारण किया जाता है।


दर्जी गृह

श्रीजी और नवनीत प्रियजी के लिए नए वस्त्रों को यहां पर सिला जाता है। इसके तुरंत बाद जब हम मुख्य गेट में प्रवेश करते हैं, तब उसके दाहिने वस्त्र विभाग स्थित है। यहां पर दर्जियों की एक पूरी टीम है, जो श्रीजी के लिए वस्त्रों की सिलाई करती है। श्रीजी प्रतिदिन एक नया पोशाक धारण करते हैं, इसलिए यहां पर लगातार काम चलता रहता है।


खरास गृह

यह स्थल धौली पाटिया एवं प्रीतम चैक के बीच स्थित है। अनाज की सभी सामग्रियों को यहां पर चक्की में पीसा जाता है।


पाकशाला, रसोई घर

यह प्रीतम पोल के आगे स्थित है। यहां पर पत्तलों का निर्माण किया जाता है। यहां पर प्रसाद वितरण हेतु प्रयुक्त होने वाली सभी सामग्रियों को निर्मित किया जाता है।


विद्या विभाग, गोविंद पुस्तकालय

यह पुस्तकालय एवं प्रकाशन कार्यालय है। यहां पर सभी धार्मिक पुस्तकों का मुद्रण होता है। आप को यहां से पुष्टि मार्ग से संबद्ध पुस्तकों का संग्रह प्राप्त हो सकता है।



मंदिर का संगठन

श्रीनाथजी की हवेली स्वयं में एक शहर के समान है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सारी सेवा को सहजता एवं कुशलता से संचालित किया जाए। आज भी यहां पर सभी परंपरागत नियमों का पूरी तरह से पालन किया जाता है, इसमें कुछ भी नहीं बदला है। जिस सर्वाधिक महत्वपूर्ण नियम का पालन किया जाता है, वह है सेवकों द्वारा अपनायी जाने वाली शुद्धि। सामग्रियों के उपयोग एवं सेवा के दौरान हर समय शुद्धता का ध्यान रखा जाता है।

परंपरा के अनुसार तिलकायत वल्लभ कुल की पीढ़ियां हैं। मंदिर के उत्सवों को सहजता से संचालित करने के लिए वर्तमान गोस्वामी ने एक वैष्णव समिति का गठन किया।

राजस्थान सरकार ने एक मंदिर संचालन बोर्ड का गठन किया है। सरकारी अध्यक्ष ने यह घोषणा की है कि इसके लिए प्राचीन परंपराओं एवं मान्यताओं को बरकरार रखना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त मर्यादा का पूर्णता से पालन करना और उसे बरकरार रखना भी अनिवार्य है।

सरकारी नियंत्रण बोर्ड ने मंदिर के अंदर कार्य करने के प्रारंभिक तरीकों को स्वीकार किया। सरकारी नियंत्रण बोर्ड ने कुछ परिवर्तनों के साथ मंदिर के प्रारंभिक तरीकों को स्वीकार किया। यहां पर प्रत्येक विभाग का एक प्रबंधक है, जो इन विशेष उत्सवों के संचालन का प्रमुख होता है। इसके अंतर्गत अनेक सेवक आते हैं, जिन्हें निर्देशों का पालन करना पड़ता है। सभी कार्यों व निर्णय निर्माण के सभी मामलों में तिलकायत का निर्णय अंतिम होता है।

मंदिर का न्यास श्रीजी के खजाने में रखे हुए करोड़ों रुपए की देख-भाल करता है और उसका लेखा-जोखा रखता है।

यहां पर उपलब्ध अचल संपत्तियों में 826 दुकाने व घर, 13448 बीघा जमीन खेत व गोशाला के स्वरुप में उपलब्ध है। (यह सूचनाएं नाथद्वाराजी पर लिखित श्री आशुतोष प्रसाद शुक्ल की पुस्तिका से ली गयी है, पृष्ठ 35)

मंदिर की भव्यता एवं संपन्नता को बरकरार रखने के लिए आय के अनेक साधन हैं। विभिन्न बैठकों से प्राप्त होने वाली सभी भेंटें यहां पर आती हैं। विभिन्न राज्यों में श्रीनाथजी भंडार भी स्थित है, जहां से दान की राशि यहां पर आती है।

यह श्रीजी बाबा की महिमा और शक्ति ही है कि यहां पर कभी भी किसी चीज का अभाव नहीं होता। इसे भारत के सर्वाधिक संपन्न मंदिरों में से एक माना जाता है।


नाथद्वारा मंदिर के विभिन्न सेवकों के विषय में एक विहंगम दृष्टि


विभिन्न उपाधियों वाले सेवक श्रीजी के लिए कार्य करते हैं -

तिलकायत पुष्टिमार्ग संप्रदाय के प्रमुख हैं। वल्लभ कुल बालक।

बड़े-मुखियाजी

प्रमुख मुखियाजी

अधिकारीजीः श्रीकृष्ण भंडार में बैठते हैं

समाधानीजीः ये प्रभु को अर्पित किए जाने वाले नगद उपहारों एवं सेवाओं का रिकार्ड रखते हैं।

कीर्तनियाजीः अष्टचाप कवि की एक अनुकृति। ये श्रीनाथजी के सजीव संगीतज्ञों के समान हैं।

रसोई दरोगा

बाल भोगियाजी

चड दर्जी सेवक

जलघरियाः जो मंदिर की सेवा के लिए जल लाते हैं

फूल घरियाजीः पुष्प विभाग में काम करने वाले सेवक

पान घरियाजीः पान विभाग में कार्यरत सेवक

दूध घरियाः दुग्ध विभाग में कार्यरत सेवक

शाक घरियाः सब्जी विभाग के सेवक

गुलाबजल मुखियाः गुलाब जल विभाग का प्रभारी

झपटियाजीः

ग्वालजीः ईश्वर के गायों की देख-भाल करता है एवं उनके दूध को मंदिर में लाता है। पर्व (दिवाली) के दौरान ये सभी गायों एवं बछड़ों को मंदिर में लाते हैं।

दर्जीः प्रभु के वस्त्र को सिलने वाले दर्जी। प्रभु के नए वस्त्रों को सिलने के अतिरिक्त ये झंडे, स्कार्फ, रजाई, सामान्य पिछवाइयों एवं मंदिर के पर्दों की भी सिलाई करते हैं।

संतरीः प्रभु के प्रहरी। ये लोग इस भव्य हवेली के अनेक दरवाजों एवं गेट की रखवाली करते हैं। ये लोग तीर्थयात्रि की सुरक्षा के लिए भी उत्तरदायी होते हैं।


प्रसादी भंडार दरोगा

रसोइया

हेला वाला

खास भंडारी

गहनाघर का दरोगा आभूषण विभाग


ये बेहद स्वाभाविक सेवक हैं, जिन्हें हम हवेली में सभी स्थानो पर देखते हैं। अन्य सेवक ऐसे भी हैं जिन्हें हम कभी नहीं देख सकते, क्योंकि वे हवेली के आंतरिक क्षेत्रों में कार्य करते हैं। वे ठाकुरजी की प्रत्यक्ष सेवा में कार्यरत रहते हैं और इसलिए हम उन्हें कभी भी बाहर नहीं देखते हैं। उन्हें उच्च स्तरीय शुद्धता को बरकरार रखने की आवश्यकता पड़ती है।



श्रीनाथजी ठाकुरजी की जय हो!

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