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श्रीनाथजी - आँखों में अश्रु हैं..मन में आज प्रातःकाल से कुछ खलबली है - एक काव्य

श्रीनाथजी - आँखों में अश्रु हैं..मन में आज प्रातःकाल से कुछ खलबली है - एक काव्य


आँखों में अश्रु हैं..मन में आज प्रातःकाल से कुछ खलबली है!


कुछ भाव जो कविता के रूप में प्रस्तुत..

लम्बी हो गयी, पढ़ें जरूर 🙏


प्रभु का प्राकट्य हुआ १४०९ 1409 गिरिराज कंदरा से-

५२३८ 5238 वर्ष बीतने पर, श्री राधाश्री कृष्ण एक बार फिर पधारे श्रीनाथजी स्वरूप में।


करीब २६० वर्ष गिरिराजजी पर व्रज वासीन से दिव्य लीला खेल करने के पश्चात,

१६६९ 1669 में श्रीनाथजी उठ चले प्रिय गिरिराज से,

एक भक्त को दिया वचन पूर्ण करने पहुँचे सिंहाड (नाथद्वारा) १६७२ 1672 में।


२ वर्ष, ४ महीने, ७ दिन वे रथ में चले,

इतना भाव था श्रीनाथजी का, अपनी भक्त और सखी अजबा के लिए;


जैसे श्री गुसाँई जी ने भविष्यवाणी करी थी, १६७२ में अटक गया (रुका) श्रीनाथजी का रथ मेवाड़ के एक पिपर के नीचे,

गंगाबाई से श्रीजी ने संदेश पहुँचाया;

"यह, मेरी प्रिय भक्त अजब की जगह है, बनाओ मेरी हवेली यहीं पर;

रहूँगा कई अरसे तक यहाँ,पूरा होगा मेरी प्रिय अजबा को दिया वचन,

तुम सब भी अवस्था अपनी करो यहीं अगल बगल।


हवेली बनी शानदार, एक दिव्य गोलोक ठाकुर बालक के लायक,

सभी व्यवस्था और सेवा, शुरू हुई, श्री गुसाँई जी के बताए अनुसार।


इतिहास बताता है, आखिरी संवाद हुआ गंगा बाई के साथ।

शुशुप्त हो गयी शक्ति फिर-

बाहरी लीला खेल पृथ्वी वासी से शायद पूर्ण हो गए, प्रभु भी कुछ काल को भीतर समा गए।

सैकड़ों वर्ष यूँ ही बीते और एक बार फिर वक्त आया दिव्य बालक श्रीनाथजी प्रभु के जागने का,

और गोलोक में मची हलचल;

भेजा अंश पृथ्वी लोक को इस आदेश के साथ, 'जाओ लीला पूर्ण हो ऐसे करो श्रीजी की मदद'


अंश खुद को पहचाने, फिर प्रभु को जागता है, 'चलो ठाकुरजी समय आ गया, वापस हमें चलना है,

जल्दी जल्दी लीला पूर्ण कर लो, गोलोक को प्रस्थान करना है।


नन्हें से बालक हमारे प्यारे प्रभु श्रीजी जागे जो वर्षों से हो गए थे गुप्त!

"अरे, कहाँ गए मेरे नंद बाबा, यशोदा मैया, मुझे यहाँ छोड़ व्रज वासी सखा हो गए कहाँ लुप्त"?


अंश ने विनम्रता से समझाया, हाथ जोड़ प्रभु को याद दिलाया, 'श्रीजी बाबा, समय आ गया गोलोक वापस पधारना है,

पृथ्वी के जो कार्य अधूरे हैं, पूर्ण कर वापस हमें चले जाना है'।


किंतु, नन्हें ठाकुरजी बाहर आकर रह गए आश्चर्य चकित;

" मेरी हवेली इतनी शानदार होती थी, ये क्या हुआ,

इतनी टूटी फूटी कैसे हो गयी, कितना अपवित्र वातावरण है!

और यह कौन पृथ्वी वासी हैं जो मेरे उपर दुकानें लगा कर बैठे हैं,

क्या लोग भूल गए अंदर किसका वास है"


श्रीनाथजी प्रभु को समझने में कुछ वक्त लग गया,

और अंश को बताना ही पड़ा,

'प्रभु कुछ भाव में कमी आ गयी है, इन्हें माफ कर दीजिए,

सूझ बूझ हर इंसान की लालच के कारण कम हो गयी है,

उन्हें उनके कर्मों पर छोड़ दीजिए;

हमें कई कार्य पूरे करने हैं उसमें आप हमारा मार्गदर्शन कीजिए'.


'गिरिराज गोवर्धन कर रहा है आपका इंतजार,

लीला के शुशुप्त अंश सर झुकाए आपके दर्शन को तरस रहे हैं इतने साल;

श्रीजी, शुरू करो प्रस्थान,

ऐसा हमें तरीका सुझाएँ किसी का ना हो नुक्सान';


श्रीजी पहुँचे गिरिराज जी पर,

किंतु यह क्या!

"यहाँ भी यही हालात हैं, गोवर्धन को भी नहीं छोड़ा

इन पृथ्वी वासी ने मेरे गिरिराज को भी कब्जा कर इतना अपवित्र कर दिया;

चलो, मेरे गोलोक अंश चलो, मैं तुम्हें बताता हूँ,

मुझे भी अब जल्द से जल्द पृथ्वी से प्रस्थान करना है,

व्रज वासी हो, या फिर नाथद्वारा वासी;

लालच ने आँख पे पर्दा डाल दिया है,

जब पवित्रता ही नहीं भाव में, यहाँ अब मेरी जरूरत नहीं;

इन्हें रुपया बटोरने दो

मुझे यहाँ से मुक्त कर मेरे गोलोक वापस ले चलो"।


🙏 आभा शाहरा श्यामा

श्रीजी प्रभु की सेवा में, हमेशा


श्रीनाथजी को ६०९ (609) वर्ष बीत गए,

श्रीनाथजी बाबा हम पृथ्वी वासी पर कृपा करे हुए हैं!



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