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ShreeNathjiBhakti.org

इस वेबसाइट का औचित्यः

यह एक ऐसी वेबसाइट है जिसे श्रीनाथजी के लिए लिखा गया है, सिर्फ़ श्रीनाथजी के विषय में है तथा इसे स्वयं श्रीनाथजी का आशीर्वाद प्राप्त है। इसे श्रीनाथजी के प्रत्यक्ष आदेश से निर्मित किया गया है। श्रीनाथजी की यह इच्छा है कि सभी भक्तों को विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई जाए। इसे कुछ गैर-परंपरागत तरीके से तैयार करने की आवश्यकता थी, ताकि सभी लोग आसानी से इसे समझ सकें तथा इस दैवीय रुप से जीवंत शक्ति का अनुसरण कर सकें।


यह मेरे दिव्य गुरुश्री सुधीर भाई की कृपा थी, जिन्होंने मुझे इस अत्यधिक शुद्ध एवं पवित्र शक्ति से परिचित कराया, जो ठाकुरजी श्रीनाथजी के नाम से जाने जाते हैं।

स्वयं मुझे भी इस दैवीय शक्ति को और गहरे रूप से समझने, दिव्यता के ज्ञान का प्रचार करने के लिए; श्रीनाथजी की अद्भुत शक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करने के लिए इस वेबसाइट को तैयार किया गया है।

(भगवान शिव व पार्वती के उपासक परिवार में पली-बड़ी होने के कारण मुझे पहले इसकी जानकारी नहीं थी कि श्रीनाथजी वास्तव में कौन हैं, मेरे घर में सिर्फ़ उनका एक चित्र था, मैं उन्हें बस उतना ही जानती थी)!


इस वेबसाइट का उद्देश्य श्रीनाथजी के भाव को समझने में सहायता करना है एवं ईश्वर के इस दैवीय बाल स्वरुप की वास्तविकता को प्रदर्शित करना है, जो पृथ्वी पर हमारे बीच रहते हैं। अगर कुछ लिखने में गलत हो गया हो तो मैंने अपने गुरुश्री से, सभी दिव्य शक्तीयों से, पाठकों से क्षमा चाहती हूँ, क्योंकि ये अनजाने में हुए हैं। मैं प्रार्थना और आशा करती हूं कि इस वेब्सायट में दी हुए जानकारी अन्य अनेक लोगों को इस दैवीय आत्मा से जुड़ने में सहायताकरेगी।


वेबसाइट के अवयवः

पाठक गण श्रीनाथजी की वार्ता (दैवीय व्यक्तिगत वार्तालाप) पढ़ सकेंगे, जोकि इस वेबसाइट का एक बेहद रोचक पक्ष है। श्रीनाथजी ने उनकी प्रत्यक्ष लीलाओं में से कुछ को सार्वजनिक रुप से प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान की। जिसे हम ‘वार्ता’ कहते हैं। एक लंबे अंतराल के बाद एक बार पुनः वाह्य आयामों के अंतर्गत अपनी जागृति के साक्ष्य के तौर पर प्रयुक्त करने की इच्छा व्यक्त की।इन व्यक्तिगत वार्ताओं को स्वयं श्री ठाकुरजी श्रीनाथजी के प्रत्यक्ष हुक्म अथवा आदेश से ही सार्वजनिक किया गया और इसमें मेरे दिव्य गुरुश्री सुधीर भाई के आशीर्वाद की भी बड़ी भूमिका रही है। इन कुछ को अन्य अनेक में से चयनित किया गया है। मुझे पूर्ण आशा है कि श्रीनाथजी मुझे इनकी संख्या को बढ़ाने का आदेश देना जारी रखेंगे।


अनेक लोगों ने मुझे यह चेतावनी दी कि श्रीनाथजी के साथ आपकी जो भी दैवीय अनुभूति है, उसे आप गोपनीय रखिए और उसे सभी के साथ साझा न कीजिए, परंतु यह वास्तव में बिलकुल निराधार बात है।

सर्वप्रथम, तो मैं यह कहना चाहती हूं कि यह सिर्फ और सिर्फ श्रीनाथजी का प्रत्यक्ष आदेश ही है कि हम अपनी व्यक्तिगत अनुभूतियों को सार्वजनिक करें।

द्वितीयतः, तीन सर्वाधिक व महत्वपूर्ण ग्रंथ, ८४ वैष्णव एवं २५२ वैष्णव की वार्ता, श्रीनाथजी प्रागत्य वार्ता, श्रीनाथजी की उनके भक्तों के साथ की प्रत्यक्ष वार्ता उनके समय के श्री वल्लभाचार्य और श्री विठ्ठलनाथजी गोसाईजी के साथ की वार्ताओं पर आधारित है।

इन सब का प्रलेखीकरण श्री गोकुलनाथजी ने किया था, जिन्हें वास्तविक घटनाओं को प्रत्यक्ष दृष्टि से अनुभव करने की शक्ति प्रदान की गयी थी। वह श्री गोसाईजी के चौथे पुत्र एवं श्री वल्लभाचार्यजी के प्रपौत्र थे। मेरी मान्यता है कि इसका निर्माण श्रीनाथजी के भक्तों को आकर्षित करने और इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए किया गया है कि श्रीनाथजी हमारे विश्व में आज भी उपस्थित हैं और उनकी जीवंतता स्पष्ट है।

ये तीनो ग्रंथ, ८४ वैष्णव व २५२ वैष्णव की वार्ता, श्रीनाथजी प्रागत्य वार्ता श्रीठाकुर जी की भक्ति से संबद्ध किसी भी सत्संग का एक बहुत महत्वपूर्ण अंग बन गए हैं।

आज हम प्रलेख के रुप में जो कुछ भी सुरक्षित रखते हैं, वह केवल ठाकुरजी श्रीनाथजी के लिए है। वास्तव में यदि देखा जाए तो यह भविष्य की पीढ़ियों को श्रीनाथजी की दिव्य लीला और उनकी शुद्ध भक्ति को बेहतर तरीके से समझने में सहायता करेगी।


इस बात का साक्ष्य है कि अंतिम प्रत्यक्ष वार्ता और विचार-विमर्श, जोकि 1685 ईसवी में प्रलेखित हुआ था, भक्तों के साथ ठीक उसी प्रकार का संपर्क एक बार पुनः इस समयावधि अर्थात् लगभग १५-२० वर्ष पूर्व एक बार फिर प्रारम्भ हुआ।

वर्तमान समय के अशुद्ध काल में यह बेहद महत्वपूर्ण है कि इस साक्ष्य को स्पष्ट तौर पर प्रस्तुत किया जाए कि ईश्वर एक भ्रम अथवा कल्पना नहीं है और श्रीनाथजी का दैवीय स्वरुप वास्तविक एवं जीवंत है। ईश्वर हमारी धरती पर आज भी उपस्थित और प्रकट है!

इस अद्यतन वेबसाइट पर अधिकांश जानकारी अंग्रेजी और हिंदी भाषा में उपलब्ध है।


मेरा यह सौभाग्य था कि मैंने श्रीनाथजी की उपस्थिति का अनुभव किया और इस अनुभव के बाद ही मेरी जिज्ञासा का प्रादुर्भाव हुआ था।


अधिकांश लोगों के विपरीत मेरे लिए सीखने की प्रक्रिया विपरीतमुखी थी।

कुछ अत्यधिक शुद्ध दैवीय अनुभवों को प्राप्त करने के बाद (विस्तृत विवरण ‘लेखक के विषय में’ अध्याय में), मैंने यह अनुभव किया कि मैं श्रीनाथजी के विषय में कितना कम जानती थी और इसलिए मैंने पुस्तकों तथा इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्रियों को खोजना प्रारंभ किया। परंतु श्रीनाथजी के विषय में नेट पर उपलब्ध सभी जानकारी भजन, वस्त्र, मनोरथ एवं पर्वों के स्वरुप में ही उपलब्ध थी। इस पर संभवतः कोई भी जानकारी ऐसी नहीं थी, जो श्रीनाथजी के विषय में और उनके इतिहास व आध्यात्मिक विवरण से संबद्ध रही हो, जिसे प्राप्त करने के लिए मैं विशेष रुप से उत्सुक एवं जिज्ञासु थी। जो थोड़ी बहुत जानकारी उपलब्ध थी वह गुजराती भाषा में थी।

इस संदर्भ में बाजार में कोई भी पुस्तक उपलब्ध नहीं है, इसलिए मैंने मंदिर की दुकान पर हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध सभी पुस्तकों को खरीद लिया।


इसके बाद मेरा यह मानना है कि मैं काफी सौभाग्यशाली थी कि मैं गोकुल के श्री श्यामदासजी के संपर्क में आयी, जो श्रीनाथजी के ऊपर लिखित पुस्तकों का व्रज भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे थे। मैंने प्रकाशित होने वाली प्रायः सभी पुस्तकों को खरीद लिया।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि जब हमने कुछ विषयों पर अनुसंधान करना प्रारंभ किया, तो इस प्रक्रिया ने हमें इस विषय में काफी गहराई तक प्रवेश करने में सहायता की। शीघ्र ही यह मेरे लिए एक जुनून बन गया। मैं दिन-रात सिवाय श्रीनाथजी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं सोचती थी और इससे संबद्ध सिर्फ और सिर्फ मेरी व्यक्तिगत अनुभूतियां ही मुझ पर हावी रहती थीं।


और यह समस्त प्रक्रिया मेरे लिए बेहद वास्तवाभासी एवं दिव्य थी, क्योंकि मैंने जिन वार्ताओं को पढ़ा और जिनका पुनर्पाठन किया, वे मुझे काफी उद्वेलित करने में सहायक रहीं क्योंकि मैं अपने दैनिक जीवन में उनकी प्रत्यक्ष अनुभूति कर रही थी।

श्रीनाथजी कैसे बोलते थे, कैसे लीला करते थे, कैसे वार्ता करते थे, वह कैसे अपनी इच्छाएं प्रकट करते थे। मैं उनकी इन समस्त लीलाओं की प्रत्यक्षदर्शी एवं सहभागी बन गयी थी।


यह श्रीनाथजी की कृपा ही थी कि इस प्रक्रिया में आने के कुछ समय बाद ही मैंने अपने लोगों से संबद्ध एक दूरस्थ परिवार से संपर्क का अनुभव किया, जो पिछले १५० वर्षों से अपने परिवार में श्रीजी की सेवा करते आ रहे थे। इसे ‘सकरी सेवा’ के नाम से जाना जाता है, जहां पर परिवार के सदस्य श्रीनाथजी की अपने परिवार के एक छोटे बालक के रुप में देख-भाल करते हैं।.


दर्शन प्राप्त करने की संभावना से उत्साहित हो कर मैं उनसे मिलने गयी। मैंने अपनी आवश्यकताओं के विषय में उन्हें बताया। मैंने उन्हें यह बताया कि मुझे किसकी तलाश है और उनसे पूछा कि क्या वे इस संदर्भ में मेरी सहायता कर सकते हैं। मेरा यह बड़ा सौभाग्य था कि इस परिवार के पास उपस्थित आलमारी में श्रीनाथजी का समूचा साहित्य उपलब्ध था! उन्होंने अपनी उस अलमारी को मेरे लिए खोल दिया और इस सेवा के लिए मुझे जिस पुस्तक की भी आवश्यकता थी उसके उपयोग करने की अनुमति मुझे दे दी। इसके बाद मैंने ऐसी ढेर सारी सामग्रियों को प्राप्त किया, जिसकी मुझे तलाश थी।

श्रीनाथजी की ‘प्रागत्य वार्ता’ पुस्तक बहुत ही प्राचीन थी और यह ब्रज भाषा में थी। मुझे इसे पढ़ने, समझने और अंग्रेजी में अनुवाद करने तथा उसके बाद हिंदी में अनुवाद करने में अनेक माह लग गए। यही वह पुस्तक हैं, जिनका उपयोग मैंने इस वेबसाइट के लिए किया है। इसने मुझे श्रीनाथजी के विषय में विस्तृत जानकारी और उनके इतिहास को व्यापक रुप से समझने में सहायता की है। इसने नाथद्वारा की उनकी यात्रा को विस्तार से समझने में सहायता की है।


नाथद्वारा के विषय में मैंने विस्तृत जानकारियों को छोटी पुस्तिकाओं एवं नाथद्वारा से संबद्ध एक बेहद प्राचीन हिंदी संस्करण से एकत्रित एवं संकलित किया। मेरे पास पुस्तकों की ऐसी सूची है, जिनका उपयोग मैंने श्रीनाथजी के विषय में सामग्रियों को संकलित करने के लिए किया।



इस वेबसाइट का इतिहासः

इसका प्रारंभिक लॉन्च 18 जुलाई 2008 को हुआ था तथा उस समय श्रीनाथजी के इतिहास को सरल अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत किया गया था।

नाथद्वारा हवेली के ८ समा दर्शन का एक अनूठा विवरण है, जोकि एक बार फिर हमारी एक पहल थी। वास्तव में हमने मंदिर में कई दिन बिताए सही जानकारी पाने के लिए, ताकि सही सेवा का तरीक़ा आप के सामने प्रस्तूत किया जा सके। प्रत्येक दर्शन का अनोखा भाव बहुत ही आदिवित्य है, और इसे सर्वप्रथम इस वेबसाइट में प्रस्तुत किया गया।

नाथद्वारा हवेली के ८ समा दर्शन का एक अनूठा विवरण है, जोकि एक बार फिर हमारी एक पहल थी। वास्तव में हमने मंदिर में कई दिन बिताए सही जानकारी पाने के लिए, ताकि सही सेवा का तरीक़ा आप के सामने प्रस्तूत किया जा सके। प्रत्येक दर्शन का अनोखा भाव बहुत ही आदिवित्य है, और इसे सर्वप्रथम इस वेबसाइट में प्रस्तुत किया गया। नाथद्वारा मंदिर के एनिमेटेड दर्शन को हमने फ़्री फोन ऐप्प (free phone App) बना कर प्रस्तुत किया, जिसे एक वीडियो के रुप में यूट्यूब पर भी देखा जा सकता है। (रितेश कोछर ने इस एनिमेशन के विकास के लिए पूरा प्रयास किया, जो श्रीनाथजी की सेवा का एक स्वरुप था)। इस उद्देश्य के लिए प्रयुक्त होने वाली विभिन्न प्रकार की सभी पेंटिंग्स मेरे व्यक्तिगत संकलन एवं प्रकाशनाधिकार से संबद्ध थीं। बांसुरी संगीत को इस वेबसाइट के लिए विशेष रुप से तैयार किया गया और यह भी प्रकाशनाधिकार के अंतर्गत आता है।


हमारे द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले चार कमल और बांसुरी के प्रकाशनाधिकृत लोगो को 56 भोग छवि से हस्तगत किया गया है, जिसे मैंने अपने घर पर रखा है तथा इसका इस्तेमाल हम अपने सभी अनुप्रयोगों में करते हैं। वास्तव में हमने अपने सभी वेबसाइट पेजेज पर उपयोग किए जाने वाले चमकदार गुलाबी एवं स्वर्णिम पीत कमल के आधुनिक स्वरुप को प्राप्त करने हेतु इस छवि का इस्तेमाल किया है। कमल शुद्ध भाव का प्रतिनिधित्व करता है और प्रायः श्रीनाथजी व श्री राधाकृष्ण की सभी छवियों में कमल को देखा जा सकता है।


श्रीराधाकृष्ण के विलयित स्वरुप के रुप में श्रीनाथजी की परिकल्पना हमारी परिकल्पना थी तथा विलयित स्वरुप की पेंटिंग, जिसे हमने इस वेबसाइट में प्रयुक्त किया, अपने तरह की पहली व अनूठी है। दृश्यों का काफी दिव्य प्रभाव होता है और इसलिए मैंने अपनी कल्पना को आकृति प्रदान करने के लिए एक कलाकार को नियुक्त किया।


श्रीनाथजी के प्रकट होने का स्थान व्रज में गिरिराज गोवर्धन है, यद्यपि वे नाथद्वारा में ३७५ वर्षों से निवास कर रहे हैं। यही कारण है कि मैंने गिरिराज गोवर्धन के विषय में कुछ तथ्यों को संकलित किया एवं उससे संबद्ध पवित्र संस्थानो का अनुसंधान किया। पाठक गण गिरिराज गोवर्धन से संबद्ध सभी पक्षों का रोचक विवरण प्राप्त करेंगे। वे श्रीनाथजी के मूल क्रीड़ास्थल को देख सकेंगे और मैंने अनेक विवरणों के लिए पवित्र ग्रंथ श्रीग्रंथ संहिता का उपयोग किया है।


ठाकुरजी और मेरे गुरुश्री की कृपा के साथ हम सभी यह आशा करते हैं कि यह सेवा जिस भी स्वरुप में है, वह भविष्य में भी संभव बनी रहेगी। नयी सामग्रियों का समावेशन जारी रहेगा और वेबसाइट को अद्यतन किया जाता रहेगा।


आगंतुक गण गिरिराज गोवर्धन, व्रज मंडल और नाथद्वारा के अनेकानेक चित्रों एवं वीडियोज को भी प्राप्त कर सकेंगे।

धन्यवाद,

हार्दिक आभार एवं सभी को आशीष के साथ,

जय श्रीनाथजी जय श्रीराधाकृष्ण


कृतज्ञताः

हमारे पूर्व कर्म हमें एक ऐसे प्रारब्ध की ओर ले जाते हैं, जिसका होना सुनिश्चित होता है। ‘दिव्य श्रीजी के साथ – उनकी दिव्यता के प्रकाश की प्रदीप्ति ने मुझे पूर्ण भक्ति की ओर प्रवृत्त किया है और इस विश्व में अन्यत्र कोई अन्य स्थल नहीं है, जहां पर मैं जाना चाहुंगी। यही वह स्थान है जहां पर मैं अपनी आत्मिक और आध्यात्मिक यात्रा की पूर्ति को संभव बना सकती हूं।’

श्रीनाथजी, मैं यह नहीं मानती कि मानव के स्वरुप में हम ईश्वर को साधुवाद प्रकट कर सकते हैं, मैं मस्तिष्क, शरीर व आत्मा के साथ स्वयं को समर्पित करती हूं तथा यह आशा करती हूं कि मैं उस सेवा को पूर्णता प्रदान कर पाउंगी, जो आपकी भौतिक लीला की पूर्णता के लिए परम आवश्यक है। आपका सखापन और आपकी लीला ने मुझे जीवन के एक अन्य स्तर एवं दिव्य शिखर को स्पर्श करने में सहायता की है।


मेरा विनम्र प्रणाम मेरे गुरुश्री को, जिन्होंने परमात्मा श्रीनाथजी के साथ मिलन के लिए मेरी आत्मा को शुद्ध और परिष्कृत किया है। किसी भी तरह का धन्यवाद कभी भी पर्याप्त नहीं होगा!

आप सभी को आशीर्वाद


प्रियंका शाहरा , आपने इस वेबसाइट की डिजाइन और विकास के सभी पक्षों में मेरी सहायता की है। मेरा परिवार – सदैव ही मेरे साथ रहा है! आप सब को मेरा प्यार।





(इस वेब्सायट के सभी पोस्ट और फोटो कॉपीरायटड हैं; अगर आप कहीं प्रयोग में लेना चाहें तो उपयुक्त लिंक्स और क्रेडिट जरूर दें)






संदर्भ एवं जानकारी के लिए प्रयुक्त की गयी विभिन्न पुस्तकें एवं साहित्यः

श्री नाथद्वारा का सांस्कृतिक इतिहास – प्रभुदास वैरागी (हिन्दी में) श्रीनाथजी – श्री रामनाथ शास्त्री (ब्रज भाषा में) श्रीनाथजी की प्रागत्य वार्ता (ब्रज भाषा) – रामनाथ शास्त्री श्रीनाथजी की भावना (हिन्दी) (नाथद्वारा से संबद्ध दोहे) – पंडित श्रीमाधव शर्मा, महादेव शालिग्राम बुक सेलर चैरासी वैष्णव की वार्ता, तीन जनम की भावना सहित (ब्रज भाषा) – श्री द्वारकादास पारिख श्री नाथद्वारा का सांस्कृतिक इतिहास (1995-हिन्दी) – प्रभुदास बैरागी कृष्णा ऐज श्रीनाथजी – अमित अंबालाल इन एडोरेशन ऑफ कृष्णा – कल्याण कृष्ण व के तलवार दी अमेजिंग स्टोरी ऑफ श्रीनाथजी (अंग्रेजी) – श्री श्यामदास, तुलसी और असीम कृष्ण दास द्वारा संपादित टू फिफ्टी टू वैष्णव वार्ताज (अंग्रेजी) – श्यामदास द्वारा अनुदित श्रीजी दर्शन (हिन्दी) – मंदिर मंडल नाथद्वारा (2004) गाइड बुक टु श्री नाथद्वारा (अंग्रेजी) – कृष्ण भक्त द्वारा लिखित श्री नाथद्वाराजी (हिन्दी) – आशुतोष शुक्ला श्री नाथद्वारा (हिन्दी) – नारायणलाल शर्मा श्री वल्लभाचार्य, लाइफ, टीचिंग्स एंड मूवमेंट (अंग्रेजी-1943, 1969)- भाई माणिकलाल सी. पारेख कृष्णा ऐज श्रीनाथजी, राजस्थानी पेंटिंग्स फ्रॉम नाथद्वारा – अमित अंबाला इन एडोरेशन ऑफ कृष्णा, पिछवाईज ऑफ श्रीनाथजी – कल्याण कृष्ण, के तलवार

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