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गुरुश्री सुधीर भाई

गुरुश्री मैं विनम्रतापूर्वक आप के सम्मुख नतमस्तक हूं। आपने मुझमें जो विश्वास प्रदर्शित किया है, उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं, क्योंकि इस विश्वास के कारण मुझे उस शाश्वत प्रश्न का उत्तर प्राप्त हुआ है, जिसकी लालसा प्रत्येक साधक को होती है, अर्थात् ‘मैं कौन हूं’।

मैं श्री राधाकृष्ण श्रीनाथजी की आभारी हूं एवं उनके प्रति पूर्ण कृतज्ञता प्रकट करती हूं कि उन्होंने इस आत्मिक यात्रा को प्रारंभ करने के लिए सही मार्ग का दर्शन कराया।




गुरुश्री सुधीर भाई की शिक्षाएं

गुरुश्री सदैव ही यह कहते रहे हैं कि, ‘‘सत्य और वास्तविकता अतीत का अंधकार कभी भी नहीं रहा है और न ही यह भविष्य के किसी स्वप्न में निदर्शित होता है और यह इस क्षण का भी साक्षी नहीं हो सकता। अतीत में जो कुछ भी घटित हुआ उसका विलाप करना छोड़ दीजिए। यह बीत चुका है और समाप्त हो चुका है। इस पर से ध्यान हटाइए, उसको छोड़ दीजिए। आज का जो क्षण है, वह सतत् है, शाश्वत है। इसे पूरी जीजीविषा के साथ जीना चाहिए और इसका अनुभव बिना किसी मोह-माया और वैराग की मनोवृत्ति के आधार पर करना चाहिए।’’ ‘‘प्रत्येक क्षण आनंद और सुख से भरा हुआ है। पूरी तरह से वर्तमान क्षण में जिएं, अभी और आज के क्षण में आनंद की अनुभूति करें तथा इसे अपने आस-पास फैलाएं एवं प्रसार करें। हमारा जीवन सभी के लिए आशीर्वाद के समान है।’’

आंखों को खोल कर ध्यान करें, ऐसा आपने हमें बताया है।

मैंने उनके साथ रह कर नम्रता के वर्ताव को सीखा और साथ ही पर्याप्त धैर्य और अनुशासन का ज्ञान भी प्राप्त किया। समुचित अनुशासन के बिना कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। हमारा प्रयास कुछ भी हो, अनुशासन के बिना कुछ भी संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक क्रियाकलाप और चिंतन की पृष्ठभूमि में सबसे महत्वपूर्ण है उचित भाव अर्थात अनुभूति, मंशा और भावनाएं। इसके बिना सक कुछ व्यर्थ है। भाव के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती और धन भी भाव को खरीद नहीं सकता। ‘‘कोई भी व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में सांसारिक कर्मों की पूर्ति से दूर नहीं भाग सकता।’’ भक्ति और आध्यात्मिकता के मार्ग पर जो प्रथम सिद्धांत बताया है, वह किसी भी साधक को परिवार व सामाजिक जीवन की दैनिक चर्या से दूर भागने की अनुमति नहीं देता है। गीता की भी यह शिक्षा है और यही परम सत्य भी है। अगर मैं कभी परिहास के दृष्टि से भी कह देती कि यदि हम पर्वतों पर वास करने चले जाएं तो सभी आध्यात्मिक अनुशासनों का पालन करना कितना सरल हो जाएगा; तो मुझे गुरुश्री से श्री कृष्ण और उनकी गीता के नियम पर बड़ा व्याखन मिल जाता, ‘‘आप अपने उत्तरदायित्वों से नहीं भाग सकते। ईश्वर ने आपको एक निश्चित व्यवस्था, परिस्थिति और संबंधों की आधारशिला प्रदान की है। आप को उसे अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमताओं के साथ पूर्ण करना आवश्यक है। वास्तव में चौबीस घंटों के बीच एक समुचित समय प्रबंधन के साथ आप को अपनी साधना के लिए कुछ समय निकालना चाहिए; इस अवधि में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना चाहिए तथा इस निर्धारित समय में आप वह सब कुछ कर सकें, जो आवश्यक है। यह आपके लिए अपने जीवन को जीने का सबसे उचित तरीका हो सकता है”।”यह कितनी आदर्श अवस्था है! लेकिन क्या यह सरल है? बिलकुल भी नहीं! आपने सदैव ही मुझे यह बताया है कि, ‘‘यदि आपकी मंशा सही है और यदि आप अपने जीवन को सत्य और ईमान के साथ व्ययतीय करते हैं, तब आपको समाज से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी स्थिति में ईश्वर सदैव ही आप के साथ होता है। आप स्वयं को उसे समर्पित कर दें और वह सदैव ही समुचित तरीके से किसी भी परिस्थिति में आपकी सहायता करेगा।’’

एक अन्य बात जिसे गुरुश्री ने सदैव ही हमसे कहा और उसे करने के लिए कहा कि, आप अपनी आत्मा को घुमाने ले जाएँ। यह एक आध्यात्मिक अभ्यास है। उन्होंने कहा, ‘‘हम सदैव घूमते रहते हैं, अपने सहयोगियों के साथ आनंद उठाने का प्रयास करते हैं, परंतु आत्मा का क्या होगा? इसलिए जब भी आप टहलने के लिए जाए तो उसे अपनी संगिनी बनने के लिए कहें। ऐसी स्थिति में आत्मा भी आनंद का अनुभव करेगी और व्यक्ति को धीरे-धीरे उसकी उपस्थिति का एहसास होने लगेगा।’’ उनके अनुसार यह अपनी आत्मा के साथ जुड़ने का सरलतम तरीका है। अंततः जब समय उपयुक्त था तब मैंने टहलने के दौरान एक वाह्य विश्व का दर्शन कराने के लिए शरीर अथवा मस्तिष्क के साथ आत्मा के एकाकार होने का अनुभव किया और उसकी साक्षी बनी।

एक गुरु के रुप में सभी पूजा और सेवाएं श्रीनाथजी की ओर निर्देशित हैं, सभी मनोरथ सेवा केवल गौमाता के लिए है। पवित्र गाय की सेवा के प्रति उन्होंने जो कुछ भी ज्ञान प्रदान किया एवं इस संदर्भ में जो कुछ भी प्रोत्साहित किया, वह अद्भुत है। इसमें दीक्षा के सत्र की कोई व्यवस्था नहीं है। वह श्रीनाथजी की ऊर्जा व आशीर्वाद के लिए एक भंडार के समान हैं, जिसे वे योग्य भक्तों में बाँटते हैं। जन्म से जो दिव्य चिन्ह हैं, और जो दिव्य ऊर्जा के प्रवाह से जो चिन्ह प्रगट होते हैं वे असाधारण शक्ति के प्रतीक हैं; कुछ चुनिंदा लोग इस असाधारण दर्शन के भागी बने हैं और लाभ पाया है।


समय + समझ + संयोग = संतोष गुरुश्री का यह आदर्श वाक्य है, और गीता का व्याखन भी इसमें छुपा है। भाव + श्रद्धा = आत्म शुद्धि = ईश्वर अनुभूति + अनुभव यह सुधीर भाई का एक अन्य नारा है।


गुरुश्री सुधीर भाई का श्रीनाथजी के साथ संबंधः

गुरुश्री का श्रीनाथजी के साथ मित्रता दिव्य मैत्री का एक चरम उदाहरण है। वह कितनी आसानी से इस दैवीय संपर्क के विषय में बात करते हैं और यह तभी संभव है, जब व्यक्ति दैवीय शक्ति के साथ एकाकार हो जाए। उन्होंने श्रीनाथ बाबा के साथ ‘सखा भाव’ को पूरी तरह से साझा किया है। ये दोनो एक दूसरे के प्रति विश्वास करते हैं और उनका प्रेम उन्मुक्त रुप से एक दूसरे के प्रति समर्पित होता है। और बेशक मैं ऐसे गुरु और महा गुरु की शिष्या हूं। अपने आराध्य के साथ गुरुश्री के संबंध की मधुरता बहुत ही रोचक है औरहमेशा मेरे हृदय व आत्मा को बेहद गहराई से स्पर्श करती है। उन क्षणों में जब गुरुश्री सही मनःस्थिति में होते हैं तब श्रीनाथजी से उनके संबद्ध की कहानियों को सुनने में परम आनंद महसूस करती हूं। ऐसे मौक़े पर मैं हमेशा पूर्ण भाव लीला ठाकुर जी के प्रति प्रेम व भक्ति के सर्वोच्च प्रदर्शन करती है। और मैं गुरुश्री से विनती करती हूँ कि यह प्रक्रिया समाप्त न हो। मैंने ऐसे अवसरों पर ऊर्जा के जिस प्रवाह का अनुभव किया है, वह किसी भी सुख से परे है।


गुरुश्री ने मुझे श्रीनाथजी से जिनकी नाथद्वारा में साक्षात् उपस्थिति है, प्रेम करना सिखाया तथा उनके ‘नटखट स्वरुप’ से भी परिचित कराया है।. उनकी श्रीजी बाबा (श्रीनाथजी) के साथ की अंतरंगता व निकटता बेमिसाल है। विशेष क्षणों के दौरान मैं इस बात को लेकर भ्रम में फंस गयी कि कौन किसके साथ है!


सुधीर भाई का भौतिक शरीर किसी भी मंदिर के समान पवित्र और शुद्ध है। उनके देव (श्रीनाथजी), जो बेहद जीवंत स्वरुप में भीतर रहते हैं, उन्हें बेहद प्रेम करते हैं। उनके अंदर अत्यधिक दैवीयता का समावेश है। मुझे आश्चर्य है कि वह किस प्रकार एक सामान्य बेहद विनम्र व सरल मनुष्य, के समान कार्य करते हैं। वास्तविकता के स्तर के प्रति उनका विचार अत्यधिक भिन्न है। यह भाव की दुनिया है, जो ऊर्जा और प्रकंपन, प्रभामंडल व रंग, आनंद, उत्सव, सत्य, शुद्धता, उत्साह, आश्चर्य व रहस्य से परिपूर्ण है और विश्लेषण से परे है।


अधिकांश समय मैंने यह पाया कि वह आध्यात्मिक प्रकाश से भरे हुए हैं। वह अपने आराध्य श्रीनाथजी बाबा के साथ आध्यात्मिक अवस्था को उच्चतर अवस्था में ले जाने की दिशा में उच्चस्तरीय आयामों के साथ जीवन-यापन करते हैं।

गुरुश्री सुधीर भाई का विश्वास एवं मान्यताएं दैनिक प्रार्थना एवं आशीर्वाद के माध्यम से जो भी गुरुश्री कार्य करते हैं, उसका ‘‘.01’’ का फैक्टर सदैव ही श्रीनाथ बाबा को समर्पण होता है। आत्मा की शुद्धता व वास्तविकता के कारण श्रीजी के आशीर्वचन सदैव ही गुरुश्री के लिए उपलब्ध होते हैं।


‘सब का भला हो’, आनंद में रहो। मैंने उनके साथ अनेकानेक घंटों के सानिध्य में असाधारण रुप की अनेक दिव्य रहस्यमय स्थितियों की साक्षी रही हूं। जैसा किवह कहते हैं, ‘‘यह ऐसी जगह हैं जहां पर केवल विश्वास व भक्ति ही कारगर सिद्ध होती है। ज्ञान दिव्य जगत में गहनतम अनुभव के रुप में प्रवेश नहीं कर सकता। एक व्यक्ति को केवल विश्वास व भक्ति के साथ ही इसमें प्रवेश करना होगा।’’ इसके बाद जब समूचा अनुभव जीवंत हो उठेगा, तब हम इसमें एक प्रतिभागी के रुप में उपस्थित होंगे, बजाए इसके कि हम सिर्फ और सिर्फ प्रेक्षक के रुप में ही अपनी भूमिका सुनिश्चित करें।’’ ‘‘जहां पर ज्ञान का समापन होता है, वहां से विश्वास का प्रारंभ होता है।’’ ‘‘किसी भी प्रकार का आध्यात्मिक विचार कभी थोपा नहीं जा सकता। यह सदैव ही स्वतंत्र इच्छा पर निर्भर होता है।’’


उनके साथ व्ययतीत किए गए प्रत्येक क्षण ने मुझे दिव्य घटनाओं से परिपूर्ण विश्व के प्रति अंतर्दृष्टि प्रदान की है। इन दिव्य घटनाएँ को प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, बल्कि यह स्वतः ही घटित होती है।

इस दिव्य ऊर्जा का नाथद्वारा से मथुरा एवं वहां से वापस आने की से परिपूर्ण यात्रा का मैंने अनेक बार अनुभव किया है और प्रत्येक बार मैं अचंभित व आश्चर्यचकित हो गयी हूं।


सुधीर भाई सदैव ही मुझे यह बताते रहे हैं कि, ‘‘इस विशाल पृथ्वी पर श्रीकृष्ण (भगवान) के पास कोई स्थान नहीं है। लोग पत्थर को पूजते हैं, लोग मंदिरों में जाते हैं.. जहां पर ईश्वर की कोई ऊर्जा नहीं होती। और जब यही ईश्वर अपनी ऊर्जा के साथ उनके समक्ष उपस्थित होता है, तब वह उसे नहीं अनुभव कर पाते।’’


इन क्षणों के मध्य मैंने सुधीर भाई की आंखों में पूरी उदासी और दुख को महसूस किया। ऐसा समझ आता है की हम इंसान कितने ख़ुदगर्ज़ और ना समझ हो गए हैं! कितने लोग हैं जो श्री राधाकृष्ण की उपासना निःस्वार्थ भाव से करते हैं? (कोई भी ईश्वर को नहीं चाहता, प्रत्येक व्यक्ति अपने भौतिक लाभ, नाम व प्रसिद्धि, धन एवं शक्ति के लिए उनसे प्रीति रखता है..)


सुधीर भाई के साथ जब भी समय व्ययतीत किया है अप्रत्यक्ष – प्रत्यक्ष दिव्य ऊर्जा के दर्शन हुए हैं। गुरुश्री एक उच्चतर ऊर्जादायी मंदिर के समान हैं, जिनके पास श्रीनाथजी की दिव्य ऊर्जा अपनी इच्छा एवं मर्ज़ी से आती-जाती रहती है।


मैंने उनके और श्रीनाथजी के साथ नाथद्वारा में श्रीनाथजी की गोशाला में घंटों समय बिताया है। श्रीनाथजी की निजी गोमाता कामधेनु नंद बाबा की मूल वंश परंपरा से संबद्ध हैं, जिनकी यहां पर दिव्य उपस्थिति है।


मंदिर में आख़िरी दर्शन पूर्ण होने होने के बाद हम सीधे गौशला जाते हैं थूली करने, और प्रभु श्रीनाथजी दर्शन जल्दी से पूर्ण करके हमेशा झटपट गौशला पहुँच जाते हैं गुरुश्री के साथ समय बिताने के लिए!


ऐसे गुरु और महागुरु के सम्मुख मैं नतमस्तक हूं।

धन्यवाद

जय श्री हरि



गुरुश्री सुधीर भाई कौन हैं?

मेरे जीवन में आध्यात्मिक प्रकाश एवं भक्ति की प्रथम किरण गुरुश्री सुधीर भाई के माध्यम से आयी, जिन्होंने मेरे सम्मुख अपने दिव्य स्वरुप का परिचय दिया। उनसे पहली मुलाकात ज्योतिषीय परामर्श के संदर्भ में हुयी थी, क्योंकि वे प्रख्यात ज्योतिषी हैं। वह चिकित्सकीय ज्योतिष में पीएचडी हैं। वह एक स्प्रिचुअल हीलर, मेडिकल डाउसर, नेचुरोपैथ हैं। इसके अतिरिक्त वह बीस से अधिक उपाधियों के वाहक भी हैं, इनमें से सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं: ज्योतिष आचार्य, दैवज्ञ भूषण, ज्योतिष महर्षि, विश्व ज्योतिष सम्राट-91, समाज श्री अवार्ड। इन्हें 1991 में भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से ‘विश्व-आध्यात्मिक अति महा परम जगद गुरु’ की उपाधि प्राप्त हुयी। वह एक ऐसे गृहस्थ का जीवन जीते हैं, जो अपने परिवार की देख-रेख में पूरी तरह से संलग्न रहता है।

अब वह अपने सभी पेशेवर कार्यों से सेवा निवृत्त हो चुके हैं एवं इन्होंने अपने जीवन और समय को श्रीनाथजी की सेवा में समर्पित कर दिया है।

इससे पाठकों को गुरुजी के व्यक्तित्व के गहन आध्यात्मिक पक्ष के विषय में जानकारी प्राप्त करने में सहायता उपलब्ध होगी, क्योंकि मैंने गुरुजी के साथ अपने 22/23 वर्षों के निकट सानिध्य के जरिए बहुत कुछ जाना और समझा है।

सुधीर भाई के साथ एक व्यक्ति और उसके बाद एक गुरु के रुप में मेरा अनुभव सदैव ही सामान्य से परे रहा है। एक गुरु के रुप में वह सदैव ही मुझे उच्च स्तरीय आध्यात्मिक लक्ष्यों की ओर प्रोत्साहित करते रहे हैं। उन्होंने मुझे इस जीवन में वास्तविक उद्देश्य के लिए स्वयं में सही जागरुकता का सूत्रपात करने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने बारंबार यह स्पष्ट किया है कि, ‘‘तुम्हारी आत्मा भिन्न है, जागो.. इस आत्मा की गुणवत्ता असाधारण है और जब एक बार यह जागृत व शुद्ध हो जाती है, तब यह दैवीय रुप से शक्तिशाली हो जाती है। मुझे तुम्हारी आत्मा में रुचि है, क्योंकि उसमें कुछ असाधारण बात है।’’ उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उच्च स्तरीय आध्यात्मिक स्तर पर पहुंच सकती हूं, इसके लिए केवल मुझे अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।


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